शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Wednesday, August 17, 2011

Our 2nd Anniversary/ दूसरी वर्षगाँठ......

ॐ सांई राम


We are Celebrating


Our 2nd Anniversary






We have started our group two years ago on 16th August 2009


&


NOW


By the grace of lord Sai and support of all group members
we have turned now 2 (TWO) year old group and celebrated our Second Anniversary in Shirdi at Sai Darbaar.


Thanking all of our group members from the bottoms of my heart for their supportive and encouraging relastionship with us.


May Baba bless us all....


कल हमने  बाबा जी की कृपा से हम अपनी दूसरी वर्षगाँठ शिर्डी की पावन धरती पैर बाबा जी के आँगन में मनाई, जैसा की हमने अपने इस ग्रुप की शुरुआत 16  अगस्त 2009 में की थी


आप सभी के भरपूर सहयोग एवं आशीर्वाद से ही हम आज सफलता की दूसरी पायदान तक पहुंचे है...


हम तहे दिल से आप सभी का शुक्रिया अदा करते है और आशा करते है की आगे भी आप का सहयोग प्राप्त होता रहेगा.....


बाबा जी से प्रार्थना है की वह अपनी कृपा दृष्टि हम सभी पर बनाये रखे ..
ॐ सांई राम


दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है, क्योंकि दृष्टि का परिवर्तन मौलिक परिवर्तन है। अतः दृष्टि को बदलें सृष्टि को नहीं, दृष्टि का परिवर्तन संभव है, सृष्टि का नहीं। दृष्टि को बदला जा सकता है, सृष्टि को नहीं। हाँ, इतना जरूर है कि दृष्टि के परिवर्तन में सृष्टिभी बदल जाती है। इसलिए तो सम्यकदृष्टि की दृष्टि में सभी कुछ सत्य होता है और मिथ्या दृष्टि बुराइयों को देखता है। अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हमारी दृष्टि पर आधारित हैं।


दृष्टि दो प्रकार की होती है। एक गुणग्राही और दूसरी छिन्द्रान्वेषी दृष्टि। गुणग्राही व्यक्ति खूबियों को और छिन्द्रान्वेषी खामियों को देखता है। गुणग्राही कोयल को देखता है तो कहता है कि कितना प्यारा बोलती है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी बदसूरत दिखती है। गुणग्राही मोर को देखता है तो कहता है कि कितना सुंदर है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी भद्दी आवाज है, कितने रुखे पैर हैं। गुणग्राही गुलाब के पौधे को देखता है तो कहता है कि कैसा अद्भुत सौंदर्य है। कितने सुंदर फूल खिले हैं और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितने तीखे काँटे हैं। इस पौधे में मात्र दृष्टि का फर्क है। जो गुणों को देखता है वह बुराइयों को नहीं देखता है।




कबीर ने कहा-
बुरा जो खोजन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। 
कबीर ने बहुत कोशिश की बुरे आदमी को खोजने की। गली - गली, गाँव - गाँव खोजते रहे परंतु उन्हें कोई बुरा आदमी न मिला। मालूम है क्यों ?  क्योंकि कबीर भले आदमी थे। और  भले आदमी को बुरा आदमी कैसे मिल सकता है?


कबीर अपने आपको बुरा कह रहे हैं। यह एक अच्छे आदमी का परिचय है, क्योंकि अच्छा आदमी स्वयं को बुरा और दूसरों को अच्छा कह सकता है। बुरे आदमी में यह सामर्थ्य नहीं होती। वह तो आत्म प्रशंसक और परनिंदक होता है। वह कहता है भला जो खोजन मैं चला भला न मिला कोय, जो दिल खोजा आपना मुझसे भला न कोय।






ध्यान रखना जिसकी निंदा-आलोचना करने की आदत हो गई है, दोष ढूँढने की आदत पड़ गई, वे हजारों गुण होने पर भी दोष ढूँढ निकाल लेते हैं और जिनकी गुण ग्रहण की प्रकृति है, वे हजार अवगुण होने पर भी गुण देख ही लेते हैं, क्योंकि दुनिया में ऐसी कोई भीचीज नहीं है जो पूरी तरह से गुणसंपन्ना हो या पूरी तरह से गुणहीन हो। एक न एक गुण या अवगुण सभी में होते हैं। मात्र ग्रहणता की बात है कि आप क्या ग्रहण करते हैं गुण या अवगुण।


तुलसीदासजी ने कहा है - जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है उसे वैसी ही मूरत नजर आती है।


Om Sai Ram


























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