शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Tuesday, April 9, 2013

श्री साईं लीलाएं - मुले शास्त्री को बाबा में गुरु-दर्शन




ॐ सांई राम



















कल हमने पढ़ा था.. भक्तों के मन की बात जानने वाला बाबा

















श्री साईं लीलाएं


















मुले शास्त्री को बाबा में गुरु-दर्शन

    



नासिक के रहनेवाले मुले शास्त्री विद्वान थे| साथ में ज्योतिष, वेद, आध्यात्म के भी अच्छे जानकर थे| एक बार वे नागपुर के प्रसिद्ध करोड़पति श्री बापू साहब बूटी
से
मिलने के लिए शिरडी आये| मिलने के बाद जब बूटी मस्जिद की ओर जाने लगे तो सहज भाव से मुले शास्त्री भी उनके साथ चल दिये|



जब वे दोनों मस्जिद पहुंचे तो बाबा भक्तों को आम खिला रहे थे| उसके बाद उन्होंने केलों को खाने के लिए दिन शुरू किया, परन्तु केले बांटने का उनका तरीका एकदम अनोखा था| बाबा केले की गिरी निकालकर भक्तों को देते और छिलके अपने पास रख लेते थे| यह देखकर मुले शास्त्री आश्चर्य में पड़ गये| चूंकि मुले शास्त्री हस्तरेखा के भी ज्ञाता थे, उनकी बाबा के हाथों की लकीरें देखने की इच्छा हुई| आगे बढ़कर इसके लिए उन्होंने बाबा से प्रार्थना की| पर साईं बाबा ने उनकी बातों पर ध्यान न देकर न देकर उन्हें खाने के
लिए केले पकड़ा दिए
| मुले शास्त्री ने बाबा से दो-तीन बार विनती की, पर बाबा ने उसकी बात न मानी| आखिर हारकर वे अपने ठहरने की जगह पर लौट आये|



बाबा जब दोपहर को लेंडीबाग से मस्जिद लौटे तो भक्त आरती की तैयारी में जुटे हुए थे| बाजों की आवाज सुनकर बापू साहब जाने के लिए उठे और मुले जी से चलने के लिए कहा| लेकिन ब्राह्मण होने के कारण उन्होंने मस्जिद जाना उचित न समझा और टालने हेतु बोले, शाम को चलूंगा| बापू साहब अकेले ही मस्जिद बाबा की आरती में चले गए|



इधर आरती सम्पन्न होने के बाद बाबा बूटी से बोले - "जाओ और उस नए ब्राह्मण से कुछ
दक्षिणा लाओ
|" बूटी ने आकर मुले जी से दक्षिणा मांगी तो वह हैरान-से रह गये, कि मैं तो अग्निहोत्री ब्राह्मण हूं| क्या मुझे बाबा को दक्षिणा देनी चाहिए ? ऐसा विचार उनके मन में आया| फिर बाबा जैसे पहुंचे हुए संत ने मुझसे दक्षिणी मांगी है और बूटी जैसे
करोड़पति दक्षिणा लेने के
लिये आये हैं तो कैसे मना किया जा सकता है ? ऐसा विचार करके मस्जिद जाने के लिए चल पड़े| पर मस्जिद पहुंचते ही उनका ब्राह्मण होने का अहंकार फिर जग
उठा और वह मस्जिद
से कुछ दूर खड़े होकर वहीं से ही बाबा पर पुष्प अर्पण करने
लगे
|



लेकिन उन्हें यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि बाबा के आसन पर साईं
बाबा नहीं
, बल्कि गेरुये वस्त्र पहने उनके गुरु कैलाशवासी घोलप स्वामी विराजमान हैं| उन्हें अपनी आँखों पर शक-सा हो गया| कहीं वह कोई स्वप्न तो नहीं देख रहे हैं, ऐसा सोचकर खुद को चिकोटी काटकर देखा| उनकी समझ में नहीं आया कि उनके गुरु यहां मस्जिद में कैसे आ
गया
? फिर वे सब कुछ भूलकर मस्जिद की ओर बढ़े और गुरु के चरणों में शीश झुकाकर हाथ
जोड़कर
स्तुति करने लगे| अन्य भक्त बाबा की आरती गा रहे थे| लोगों की नजरें तो साईं बाबा को देख रही थीं, पर मुले जो की नजर अपने गुरु घोलपनाथ को देख रही थी| वे जात-पांत का अहंकार त्यागकर गुरु-चरणों में गिर पड़े और आँखें बंद कर
लीं
| यह सब दृश्य देखकर लोगों को भी बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि दूर से फूल फेंकने
वाला ब्राह्मण अब बाबा के
चरणों पर गिर पड़ा है| लोग बाबा की जय-जयकार कर रहे थे| मुले घोलपनाथ की जय-जय कर रहे थे|



जब उन्होंने आँखें खोलीं तो सामने साईं बाबा खड़े दक्षिणा मांग रहे थे| बाबा का सच्चिदानंद स्वरूप देखकर मुले अपनी सुधबुध खो बैठे, उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी| फिर उन्होंने बाबा को नमस्कार करके दक्षिणा भेंट की और बोले, बाबा आज मुझे मेरे गुरु के दर्शन होने से मेरे सारे संशय दूर हो गए - और वे
बाबा के
परम भक्त बन गए| बाबा की यह विचित्र लीला देखकर सभी भक्त और स्वयं मुले शास्त्री
भी
दंग रह गये|







कल चर्चा करेंगे..डॉक्टर को बाबा में श्री राम के दर्शन    















ॐ सांई राम






===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===


बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।



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