ॐ सांई राम
कल हमने पढ़ा था.. दाभोलकर के मन की बात
श्री साईं लीलाएं
किसी से बुरा मत बोलो
बाबा केवल
यही चाहते थे कि सबका भला हो| बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को
सत्य-मार्ग पर चलने के लिए कहते| अच्छाई करने के लिए सबको प्रेरित करते|
जो भी व्यक्ति अच्छाई की राह पर चलता, बाबा उसका हौसला और बढ़ाते|
एक बार हेमाडपंत साईं बाबा के दर्शन करने शिरडी गये थे| वहां पर उनके मन
में यह विचार आया कि उस परम पावन स्थान पर गुरुवार (बृहस्पतिवार) के दिन
राम-नाम का अखण्ड स्मरण और कीर्तन करें| दूसरे ही दिन गुरुवार था|अपने
निश्चय को याद करके बुधवार की रात वे राम-नाम लेते-लेते सो गये| गुरुवार को
सुबह उठते ही उन्होंने राम-नाम लेना शुरू कर दिया| नित्य काम से निवृत
होकर मस्जिद में साईं बाबा के दर्शन करने गए| जब वे बूटीवाड़े के पास से
गुजर रहे थे तो मस्जिद के आंगन में औरंगाबादकरनाम के भक्त, संत एकनाथ
महाराज का रामभक्ति बताने वाला अमंगा गा रहे थे| उसका अर्थ इस तरह था -
"मैंने गुरु-कृपा का काजल पाया है और सब उसे लगाने से राम के सिवाय कुछ भी
दिखाई नहीं देता है| मेरे अंदर और बाहर भी राम हैं| मेरे सपनों में भी राम
हैं| इतना ही नहीं, मैं जागते हुए और सोते हुए राम को ही देखता हूं, मैं हर
जगह राम को ही देखता हूं| सभी कामनाएं पूरी करने वाला राम कण-कण में भरा
है और वह जनार्दन के एकनाथ का अनुभव है|"
यह गीत सुनते ही
हेमाडपंत सोचने लगे - "बाबा का खेल समझ से बाहर है| मेरे मन की बात जानकर
ही उन्होंने औरंगाबादकर से वह अमंगा गवाया होगा| नहीं तो हजारों गीत जानते
हुए भी उन्होंने यही अमंगा क्यों गाया? बाबा सब कुछ करते हैं और हम केवल
कठपुतलियाँ हैं - और यही सच है| मैंने जो कहा, जो सोचा है वह साईं माँ को
पसंद है|' -यह सोचने हुए उन्हें और भी उम्मीद मिली और यह सब मंत्र बाबा से
ही मिला| ऐसा सोच के वह पूरा दिन उन्होंने राम-नाम के साथ बिताया|एक बार की
बात है - बाबा के एक भक्त ने बाबा की अनुपस्थिति में अन्य लोगों के सामने
एक दोस्त की बात निकलते ही उसे भला-बुरा कहना शुरू कर दिया| उसके शब्द इतने
बुरे थे कि उससे सभी को घृणा हुई| ऐसा देखने में आता है कि बिना वजह निंदा
करने से विवाद ही पैदा होते हैं| पर ऐसे व्यक्ति को सही मार्ग पर लाने की
बाबा की प्रणाली बड़ी विचित्र थी|
उसकी बकवास सुनकर सभी लोग
मस्जिद की तरफ चल पड़े| अंतर्यामी साईं बाबा से यह बात छुपी न रह सकी|
दोपहर को लैंडीबाग से लौटते समय जब बाबा की उस भक्त से भेंट हुई तो बाबा
उसे अपने साथ लेकर आने लगे| रास्ते में एक जगह विष्ठा खाते एक सूअर की ओर
इशारा करते हुए बाबा ने उससे कहा - "देखो, वह कितने प्रेम से विष्ठा खा रहा
है| तुम लोगों को अपशब्द कहते हो, तुम्हारा यह आचरण निष्ठा खाते सूअर जैसा
ही है| तुम्हारे पूर्वजन्म के शुभ कर्मों के कारण ही तुम्हें यह मानव शरीर
मिला है| फिर भी तुम ऐसा आचरण करोगे तो क्या शिरडी तुम्हारी कोई सहायता कर
पायेगी, सोचो?"
वह भक्त उसी समय बाबा का उपदेश सुनकर चुपचाप वहां से चला गया|
कल चर्चा करेंगे... दासगणु को ईशोपनिषद का रहस्य नौकरानी द्वारा सिखाना
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।
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