शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Saturday, February 9, 2013

श्री साईं लीलाएं - महामारी से अनूठा बचाव


ॐ सांई राम









कल हमने पढ़ा था.. ऊदी का एक और चमत्कार










श्री साईं लीलाएं



















महामारी से अनूठा बचाव






एक समय साईं बाबा ने लगभग दो
सप्ताह से खाना-पीना छोड़ दिया था
| लोग
उनसे कारण पूछते तो वह केवल अपनी दायें हाथ की तर्जनी अंगुली उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी
आँखें फैलाकर आकाश की ओर देखने लगते थे
| लोग
उनके इस संकेत का अर्थ समझने की कोशिश करते लेकिन इसका अर्थ उनकी समझ में नहीं आता
था
|




बस कभी-कभी उनके कांपते होठों से इतना ही निकलता - "महाकाल का मुख अब खुल
चुका है
| सब कुछ उसके मुख में समा जायेगा| कोई भी नहीं बचेगा| एक-एक
करके सब चले जायेंगे
|"




साईं बाबा के मुख से निकलते इन शब्दों को सुनकर लोग मारे भय के बुरी तरह से कांप
उठते
| वे बाबा से पूछते, लेकिन
वह मौन हो जाते
| उनकी कांपती हुई अंगुली आकाश की ओर उठती और वह लंबी
सांस लेकर फटी-फटी आँखों से आकाश की ओर बस देखते रह जाया करते थे
| गांव का वातावरण सहमासहमा-सा रहने लगा था| प्रत्येक बृहस्पतिवार को साईं बाबा की शोभायात्रा बड़ी धूमधाम
से निकलती थी
, लेकिन न जाने क्यों लोगों के मन किसी अनिष्ट की
आशंका से आशंकित हो उठे थे
|




बाबा की इन बातों को सुनकर यदि किसी को सबसे ज्यादा खुशी हुई तो वह पंडितजी थे
| वह इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि साईं बाबा जो कुछ
भी कहते हैं
, वह सच ही होता है|




उनकी भविष्यवाणी झूठी नहीं हो सकती
| भविष्य
में होने वाली घटनाओं को वे शायद पहले ही जान लेते थे
| अकाल, बाढ़, महामारी ऐसी दैवी आपदाएं हैं, जो गांव-के गांव पूरी तरह से बर्बाद करके रख देती है|




इनका कोई इलाज नहीं है
| गांव के सब लोग गांव छोड़कर
चले जाते हैं
| शायद ऐसा ही कोई संकट शिरडी में आने वाला है| पंडितजी यह सोच-सोचकर मन में बहुत खुश थे कि यदि महामारी
फैली तो लोग उनके पास ही अपना इलाज कराने के लिए आयेंगे
, जिससे उनको अच्छी-खासी कमाई होगी, जबकि सारा गांव अनिष्ठ की आशंका चिंताग्रस्त था|




वर्षा ऋतु समाप्त हो चुकी थी
| बाढ़ आने की कोई संभावना न थी| अच्छी बारिश होने के कारण खेतों में फसलें भी अच्छी हुई
थीं
| अकाल पड़ने की भी संभावना नहीं थी| यदि कोई आपदा आ सकती थी, तो वह
थी महामारी
| यदि महामारी फैली तो पंडितजी का भाग्य खुल जाएगा| जब से साईं बाबा शिरडी में आए थे, पंडितजी की आमदनी तो खत्म-सी ही हो गयी थी| साईं बाबा की धूनी की भभूती असाध्य से असाध्य रोगों का
समूल ही नाश कर देती थी
| इसी वजह से पंडितजी के पास
रोगियों ने आना बिल्कुल ही बंद-सा कर दिया था
|




फिर मंदिर में भी पूजा करने वालों की संख्या भी दिन-प्रतिदिन कम होती चली जा रही
थी
| केवल पांच-सात ही लोग ही ऐसे बचे थे, जो पूजा करने के लिए सुबह-शाम मंदिर आया करते थे| इसके अलावा शाम के समय प्रसाद के लालच में कुछ बच्चे भी
मंदिर में इकट्ठे हो जाया करते थे
| इस
तरह मंदिर से होने वाली आमदनी भी नाममात्र की ही रह गयी थी
| पुरोहिताई का धंधा भी बस ले-देकर ही चल रहा था|




साईं बाबा के प्रवचनों को सुनकर लोगों में कथा सुनने की रुचि भी जाती रही
| वर्षा भी समय पर होती थी| इसलिए
समय पर वर्षा कराने के बहाने से प्रत्येक वर्ष होने वाला यज्ञ भी होना अब बंद हो गया
था
| भूत-प्रेत, ब्रह्मराक्षस
तो जैसे बाबा के गांव में कदम रखते ही गांव से पलायन कर गये था
| गांव में अब किसी भी तरह का उत्पात नहीं होता था| प्रत्येक घर में सुख-शांति बा बसेरा था ! आपस के
लड़ाई-झगड़े भी अब होने बंद हो चुके थे
| पंडितजी
को जैसे कुछ काम ही नहीं मिल रहा था
| वह
सारे दिन अपने घर में बेकार ही पड़े रहते थे
|




घर में पड़े-पड़े पंडितजी बहुत दु:खी हो गये थे
| उनके
सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी होने लगी थी
|




साईं बाबा बराबर चिंता में डूबे रहते थे
| एकटक
आकाश की ओर देखते रहते थे
, किसी से कुछ भी न बोलते थे| तभी आस-पास के बीस कोस के इलाके में हैजे की महामारी फैलने
की खबर से शिरडी गांव में कोहराम मच गया
| हैजे
की महामारी से लोग मरने लगे
|




पहले कुछ उल्टियां होतीं
, दस्त होते और लोग मौत के मुंह
में समा जाते
|जब तक लोग रोग को समझ पाते, रोगी बिना दवा-दारू के ही भगवान के पास पहुंच जाता था|




पंडितजी की सारी भाग-दौड़ व्यर्थ चली जाती थी
|



आस-पास के गांवों में हैजा फैलने की खबर सुनकर शिरडी के लोग भी अत्यंत चिंतित हो
उठे
|



वह सब इकट्ठा होकर साईं बाबा के पास पहुंचे
|



"बाबा...बाबा ! आस-पास के गांवों में हैजा तेजी से पैर पसारता जा रहा है
| अब तो वह हमारे गांव की सीमा की ओर भी बढ़ता आ रहा है| कहीं ऐसा न हो कि हमारा गांव भी इस महामारी की लपेट में आ
जाए
|" शिष्यों ने डरते-डरते साईं
बाबा से कहा
|




साईं बाबा कई सप्ताह से मौन थे
| उन्होंने खाना-पीना छोड़ रखा
था
| सारे शिष्य और वाईजा माँ उनसे मिन्नतें करके हार गये
थे
, लेकिन न तो बाबा ने खाना ही खाया और न ही किसी से
कोई बातचीत ही की थी
|




लोगों की इस पुकार को सुनकर साईं बाबा ने एक गहरी ठंडी सांस छोड़ी और फिर आकाश की
ओर पूर्ववत् की भांति देखने लगे
| मस्जिद में उपस्थित लोग भी उन
लोगों के साथ साईं बाबा के चेहरे को देखने लगे कि शायद बाबा इस महामारी से बचने का
कोई उपाय बतायेंगे
|




साईं बाबा का चेहरा एकदम गंभीर पड़ गया
| चिंता
की लकीर उनके सलोने मुख पर स्पष्ट रूप से नजर आ रही थीं
| ऐसा लगता था कि जैसे बाबा स्वयं किसी गहरी चिंता में हैं| कुछ कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं| अचानक साईं बाबा ने अपनी आँखें मूंद लीं और बोले -
"तुम लोग कल सुबह आना
| मैं सब बताऊंगा|" कहकर बाबा शांत हो गये| सब
लोग बाबा की बात सुनकर चुपचाप उठकर अपने-अपने घरों को चले गए
|




अगले दिन पौ फटते ही सब लोग द्वारिकामाई मस्जिद जा पहुंचे
| देखा मस्जिद के दालान में बैठे हुए साईं बाबा चक्की में जौ
पीस रहे थे और जौ का आटा चक्की के चोरों तरफ फैला हुआ था
|




सब लोग चुपचाप खड़े साईं बाबा को जौ पिसते हुए देखते रहे
| लेकिन साईं बाबा पूरी लगन के साथ जौ पीसे जा रहे थे| किसी की हिम्मत न हो रही थी कि वह उनसे कुछ पूछने का साहस
जुटा सकें
|




कुछ देर बाद एक भक्त से साहस जुटाया और आगे बढ़कर पूछा - "बाबा! आप यह क्या
कर रहे हैं
?"



"महामारी को भगाने की दवा बना रहा हूं
|"



"यह दवा है
?"



बाबा ने कहा - "हां
, यह दवा ही है| इस आटे को एक कपड़े में भरकर ले जाओ और गांव की सीमा में
चारों ओर जहां-जहां तक महामारी फैली हो इस दवा को छिड़क आओ
| परमात्मा ने चाहा तो इस गांव की सीमा में हैजे की महामारी
प्रवेश न कर पायेगी
|"




तब शिष्यों ने एक झोली में सारा आटा भर लिया और साईं बाबा की जय-जयकार करते हुए
गांव की सीमा की ओर चल पड़े
| दोपहर तक गांव के चारों ओर
सीमा पर आटे से लकीर-सी बना दी गयी
| इस
प्रकार साईं बाबा द्वारा पीसे गये आटे से सारा गांव बांध दिया गया
|




साईं बाबा की इस बात पर पंडितजी को विश्वास न हो पा रहा था कि हैजे जैसी महामारी
का प्रकोप इस तरह से रुक सकता है
| हैजे का प्रकोप आस-पास के गांवों
में बड़ी तेजी के साथ बढ़ता जा रहा था
| दस-पांच
आदमी रोजाना मौत के मुंह के समाते चले जा रहे थे
| चारों
ओर हाहाकार मचा हुआ था
|साईं बाबा की इस अनोखी दवा का समाचार
आस-पास के गांवों तक भी पहुंच गया
| लोग
दवा मांगने के लिए द्वारिकामाई मस्जिद आने लगे
|




"बाबा
, हमारे गांव में भी हैजा फैला है| हमारे ऊपर दया करके हमें भी दवा देने की कृपा करें|"



और भी लोग साईं बाबा के पास पहुंचकर बड़े ही दयनीय स्वर में कहने लगे - "हमें
भी दवा दे दो बाबा ! हम पर भी अपनी दया करो
| हमारा
तो सारा गांव श्मशान बन गया है
|"




"अरे
, तुम लोग इतना परेशान क्यों हो रहे हो ? जितनी दवा है, आपस
में बांटकर ले जाओ और गांव के प्रत्येक घर में छिड़क दो
| जो बीमार होगा ठीक हो जाएगा और यह महामारी तुम्हारे गांव
से भी भाग जायेगी
|" बाबा ने उन्हें सांत्वना देते
हुए कहा
|




आस-पास के गांवों के लोग बाकी बची हुई दवा को बांटकर ले गए
| साईं बाबा की चक्की की घर्र-घर्र की आवाज फिर मस्जिद के गुम्बदों
और मीनारों को गुंजायमान करने लगी
| दूर-दूर
के गांवों में पहुंच जाती
, वहां हैजे की बीमारी का
नामोनिशान ही मिट जाता
| बीमार इस तरह से उठकर खड़े हो
जाते
, मानो वह बीमार पड़े ही नहीं हों| दवा एकदम रामबाण के समान अपना काम कर रही थी| महामारी गधे के सींग की तरह गायब होती जा रही थी|




साईं बाबा की दवा की कृपा से सैंकड़ों घर उजड़ने से बच गये
| हर तरफ बस साईं बाबा की जय-जयकार के स्वर ही सुनाई पड़ रहे
थे
|




साईं बाबा की कृपा से सबसे अधिक नुकसान यदि किसी का हुआ तो वह थे पंडितजी ! उनको
कोई भी नहीं पूछ रहा था
| महामारी फैली पर उनके दवाखाने
में एक भी आदमी दवा लेने तक न आया
| पंडितजी
साईं बाबा से बड़ी बुरी तरह से जले-भुने बैठे थे
| साईं
बाबा उन्हें गांव में ऐसे खटक रहे थे जैसे आँख में तिनका
|




पंडितजी दिन-रात इसी चिंता में घुले जा रहे थे कि किस तरह से साईं बाबा को नीचा
दिखाकर
, यहां शिरडी से निकाल भगाया जाये| वह अपने मन में बराबर उनके लिए नयी-नयी योजनाएं बना रहे थे, पर उनकी सारी योजनाएं अमल में लाने पर असफल होकर रह जाती
थीं
|




 


कल चर्चा करेंगे.. मिस्टर थॉमस नतमस्तक हुए







ॐ सांई राम







===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===





बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।


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