शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Monday, January 31, 2011

Watch Maha Palki - 2011, Videos on YOU TUBE

ॐ सांई राम



Video - 1




Video - 2


Video - 3






Video - 4



सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम

ॐ सांई राम


सत्संग से प्रभु प्राप्ति सुगम



जिस प्रकार गन्ने को धरती से उगाकर उससे रस निकालकर मीठा तैयार किया जाता है और सूर्य के उदय होने से अंधकार मिट जाता है उसी प्रकार सत्संग में आने से मनुष्य को प्रभु मिलन का रास्ता दिख जाता है और उसके जीवन का अंधकार मिट जाता है। सत्संग में आने से मानव का मन साफ हो जाता है और मानव पुण्य करने को प्रेरित होता है जिससे उसे प्रभु प्राप्ति का मार्ग सुगमता से प्राप्त होता है।



मानव द्वारा किए गए पुण्य कर्म ही उसे जीवन की दुश्वारियों से बचाते हैं और जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने में सहायक होते हैं। जीवन में असावधानी की हालत में व विपरीत परिस्थितियों में यही पुण्य कर्म मनुष्य की सहायता करते हैं। अगर मनुष्य का जीवन में कोई सच्चा साथी है तो वह है मनुष्य का अर्जित ज्ञान और उसके द्वारा किए गए पुण्य कर्म। मगर इसके लिए मनुष्य को अपनी बुद्धि व विवेक के द्वारा ही उचित अनुचित का फैसला करना होता है। कोई भी मानव अपनी बुद्धि व विवेक अनुसार ही जीवन में अच्छे-बुरे व सार्थक-निरर्थक कार्यो में अंतर को समझता है। सत्संग वह मार्ग है जिस पर चलकर मानव अपना जीवन सफल बना सकता है। जिस प्रकार का शास्त्रों के श्रवण से ही सुशोभित होता है न कि कानों में कुण्डल पहनने से। इसी प्रकार हाथ की शोभा सत्पात्र को दान देने से होती है न कि हाथों में कंगन पहनने से। करुणा, प्रायण, दयाशील मनुष्यों का शरीर परोपकार से ही सुशोभित होता है न कि चंदन लगाने से।



शरीर का श्रृंगार कुण्डल आदि लगाकर या चंदन आदि के लेप करना ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह सब तो नष्ट हो सकता है परन्तु मनुष्य का शास्त्र ज्ञान सदा उसके साथ रहता है। मनुष्यों द्वारा किए गए दान व परोपकार उसके सदा काम आते हैं और परमार्थ मार्ग पर चलने वाला मनुष्य ही मानव जाति का सच्चा शुभ चिंतक होता है। प्रेम से सुनना समझना व प्रेम पूर्वक उसका मनन कर उसका अनुसरण करना ही मनुष्य को फल की प्राप्ति कराता है। लेकिन मनुष्य की चित्त वृत्ति सांसारिक पदार्थो में अटकी होने के कारण वह असत्य को ही सत्य मानता है। इसी कारण वह दुखों को भोगता है। शरीर को चलाने वाली शक्ति आत्मा अविनाशी सत्य है और वही कल्याणकारी है। 

Sunday, January 30, 2011

साधना से बढ़ता है बाबा सांईश्वर के प्रति प्रेम

ॐ सांई राम


।। जय सांई राम ।।



साधना से बढ़ता है बाबा सांईश्वर के प्रति प्रेम




प्रेम आत्मा का दर्पण है। प्रेम की ताकत के आगे बाबा भी बेबस हो जाते हैं अर्थात प्रेम में वह शक्ति है कि मानव बाबा को पा सकता है। बाबा से प्रेम करने वाला भक्त मृत्यु से नहीं डरता क्योंकि वह अपना तन-मन उनको को समर्पित कर चुका होता है। ज्ञानी साधकों का भगवान के प्रति प्रेम गहरा और घना होता है और जैसे-जैसे वे साधना करते जाते हैं वैसे-वैसे समय के साथ उनका प्रेम बढ़ता ही जाता है।



प्रेम का भाव छिपाने से भी छिपता नहीं है। प्रेम जिस हृदय में प्रकट होकर उमड़ता है उस को छिपाना उस हृदय के वश में भी नहीं होता है और वह इसे छिपा भी नहीं पाता है। यदि वह मुंह से प्रेम-प्रीत की कोई बात न बोल पाए तो उसके नेत्रों से प्रेम के पवित्र आंसुओं की धारा निकल पड़ती है अर्थात् हृदय के प्रेम की बात नेत्रों से स्वत: ही प्रकट हो जाती है। प्रेमी जिज्ञासु को चाहिए कि वह प्रेम और सेवा-भक्ति में सदा सुदृढ़ रहे। ऐसा करने पर उसे अवश्य ही मोक्ष का फल मिलेगा। संत जनों के व गुरुओं के सदुपदेश से जब उसे आत्म बोध हो जाएगा तो उसका इस संसार में आवागमन मिट जाएगा। बाबा मानव के बाहरी साज श्रृंगार से प्रभावित नहीं होते हैं बल्कि उसके लिए तो अलौकिक श्रृंगार की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार सुहागन अपने पति को मोहित करने अर्थात पाने के लिए श्रृंगार करती है उसी प्रकार बाबा से प्रेम करने वाले भक्त को प्रेम रूपी पायल पहन कर नेत्रों में अंजन लगाकर सिर में शील का सिंदूर भरना होगा अर्थात बाबा को पाने के लिए इन सब गुणों को धारण करना जरूरी है।



यह संसार बाबा की भक्ति और प्रेम का दरबार है। यहां सत कर्म करके हमें बाबा की कृपा अर्थात मोक्ष पाने का प्रयास करना चाहिए मगर इसके लिए मानव में त्याग भाव का होना जरूरी है। बाबा की कृपा व उनका प्रेम केवल उन्हीं को मिल सकता है जिन्हें संत जनों का साथ व गुरुओं से ज्ञान मिला हो।

Saturday, January 29, 2011

आज का चिन्तन

ॐ सांई राम


।। जय साँई राम ।।


इस तपते भूखंड पर

उड़ते गरम रेत के बीच

जब मैं झुकूं नल पर

तब ओ प्यास

मुझे मत करना कमजोर

पियूं तो एक चुल्लू कम

कि याद रहे दूसरों की प्यास भी

खाऊँ तो एक कौर कम

कि याद रहे दूसरों की भूख भी

बाबा से हर दम यह दुआ मांगता रहता हूँ कि जियूं इस तरह अपने इस जन्म को।



एक ओर दूसरों की प्यास का खयाल रख एक चुल्लू पानी कम पीने,  दूसरों की भूख का खयाल रख एक कौर कम खाने की चेतना से भरे चरित्र की तलाश हमारे बाबा साँई इस दुनिया में कर रहे है। लेकिन दूसरी ओर ठीक तभी यहीं इसी दुनिया में हत्यारे, आततायी व दंगाई माँ से पुत्रों को, भाईयों से बहन को, पत्नियों से पति को, कण्ठों से गीत को, जल से मिठास को और पेड़ों से हरियाली को छीन लेने का षड़यंत्र कर पूरी धरती को अशांत करने में लगे हुए हैं। जो इस सदी की भयावह घटना के रूप में सामने आता है।



बाबा साँई को तलाश है एक ऐसे इन्सान की और एक ऐसे भक्त की जो समझ सके मेरे बाबा साँई की पीड़ा को। आओ समय निकाले अपनी भागम भाग के जीवन से ओर करे धन्यवाद अपने साँई का हर उस अन्न के कौर का और हर एक चुल्लू पानी का जो हमे जीवन देता है। बाबा साँई हमसे इस भाव की ही तो अपेक्षा रखते है। आइये बाबा की इन अपेक्षाओं पर खरा उतरें।


Source : Ramesh Ramnani , DwarkaMai

Friday, January 28, 2011

मेघों पर होके सवार

ॐ सांई राम

राजाधिराज महिमा के साथ


राजाधिराज, महिमा के साथ

आ रहें है,

मेघों पर होके सवार



मुसीबत निंदा - दुःखों का सिलसिला,

खत्म होने का समय आ गया

राजाधिराज, महिमा के साथ

आ रहें है,

मेघों पर होके सवार



मेरे प्रिय का जलाली चेहरा

देखने का अब समय आ गया

राजाधिराज, महिमा के साथ

आ रहें है,

मेघों पर होके सवार



सब दुःखों से परे– अनंत वास में,

ले जाने के लिये वो आ रहा है

राजाधिराज, महिमा के साथ

आ रहें है,

मेघों पर होके सवार



अपने प्रिय के साथ करने सदा का साथ

हम जाने वाले हैं, रहें हर पल तैयार

राजाधिराज, महिमा के साथ

आ रहें है,

मेघों पर होके सवार

Thursday, January 27, 2011

साई तू है निराला...

ॐ सांई राम

मन मंदिर में बसने वाला,

साई तू है निराला...



जिसके मन में तू जन्म ले

अविनाशी आनंद से भर दे

आदि अनंत और प्रीत रीत की

जल जायेगी ज्वाला

मन मंदिर में बसने वाला,

साई तू है निराला





मुझको को तूने पास बुलाया

स्वर्ग लोक का भवन दिखाया

महा पवित्र स्थान में रहकर

आप ही उसे संभाला

मन मंदिर में बसने वाला,

साई तू है निराला





पाप में दुनिया डूब रही थी

परम पिता से दूर हुई थी

महिमा अपनी आप ही तज कर

रूप मनुष्य ले आया

मन मंदिर में बसने वाला,

साई तू है निराला





प्रेम हमें अनमोल दिखाया

प्रेम की खातिर रक्त बहाया

हर विश्वासी प्रेम से आये

खुशी से अपनी भेंट चढ़ाये

अंधकार सब दूर हुये हैं,

मन में हुआ उजाला...
मन मंदिर में बसने वाला,

साई तू है निराला

"Shirdi Ke Sai Baba Group (Regd.)" has celebrated its 1st anniversary...

ॐ सांई राम
This is to inform you all that we have started our Google Group on 15th August 2009 and which got converted in to physical activity group e.g. Sai Palki, Sai Kirtan Darbar, Sai Sandhya, Bhandara Vitran Sewa etc. by the Name of Shirdi Ke Sai Baba Group (Regd.) on dated 26th January 2010.


Yesterday our physical group "Shirdi Ke Sai Baba Group (Regd.)" has celebrated its 1st anniversary...


AND


Would like to share that moment with everyone in this group
























































Wednesday, January 26, 2011

ॐ सांई राम
सारी सृष्टि के मालिक तुम्हीं हो



सारी सृष्टि के मालिक तुम्हीं हो

सारी सृष्टि के रक्षक तुम्हीं
हो
करते हैं तुझको सादर प्रणाम

गाते हैं तेरे ही गुण
गान॥



सारी सृष्टि को तेरा सहारा

सारे संकट से हमको
बचाना


तेरे हाथों में जीवन हमारा है

अपनी राहों पर हमको
चलाना॥



हम हैं तेरे हाथों की रचना


हम पर रहे तेरी
करुणा


तन, मन, धन हमारा तेरा है

इन्हें किसी को छूने न
देना॥



अब दूर नहीं है किनारा


धीरज को हमारे
बढ़ाना


जीवन की हमारी इस नैया को

भवसागर में न खोने
देना॥

Tuesday, January 25, 2011

तेरी आराधना करूँ

ॐ सांई राम


तेरी आराधना करूँ
तेरी आराधना करूँ

तेरी आराधना करूँ

पाप क्षमा कर, जीवन दे दे

दया की याचना करूँ


तू ही महान, सर्व शक्तिमान
तू ही हैं मेरे जीवन का संगीत

ह्रदय के तार, छेड़े झनकार

तेरी आराधना है मधुर गीत,

जीवन से मेरे तू महिमा पाये

एक ही कामना करूँ

पाप क्षमा कर, जीवन दे दे

दया की याचना करूँ




सृष्टि के हर एक कण कण में

छाया है तेरी ही महिमा का राज,

पक्षी भी करते हैं तेरी प्रशंसा

हर पल सुनाते हैं आनंद का राग

मेरी भी भक्ति तुझे ग्रहण हो,

ह्रदय से प्रार्थना करूँ,

पाप क्षमा कर, जीवन दे दे

दया की याचना करूँ


पतित जीवन में ज्योति जला दे,

तुझ ही से लगी है आशा मेरी

पापमय तन को दूर हटा दे

पूर्ण हो अभिलाषा मेरी

जीवन के कठिन दुखी क्षणों का,

दृढ़ता से समाना करूँ,

पाप क्षमा कर, जीवन दे दे

दया की याचना करूँ

Monday, January 24, 2011

जन-गण-मन अधिनायक जय हे

ॐ सांई राम



जन-गण-मन अधिनायक जय हे




भारत भाग्य विधाता


पंजाब-सिंध-गुजरात-मराठा
द्रविड़ उत्कल बंगा


विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा
उच्छल जलधि तरंगा


तव: शुभ  नामे जागे
तव: शुभ   आशीष मांगे


गाये तव: जय गाथा
जन  गण  मंगलदायक जय हे


भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे


जय जय जय जय हे!
जय हिंद
*****************************************
Thou art the ruler of the minds of all people,

Dispenser of India's destiny.

Thy name rouses the hearts of
Punjab, Sind,Gujarat and Maratha,

Of the
Dravida and Orissa and Bengal;

It echoes in the hills of the
Vindhyas and Himalayas,

mingles in the music of
Jamuna and Ganges and is

chanted by the waves of the Indian Sea.

They pray for thy blessings and sing thy praise.

The saving of all people waits in thy hand,

Thou dispenser of India's destiny.

Victory, victory, victory, Victory to thee.
*****************************************
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Sunday, January 23, 2011

|| गणतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं ||

ॐ सांई राम


भारतीय होने  पर  करिए  गर्व,

मिलके  मानिए  लोकतंत्र  का  पर्व,

देश  के  दुश्मनों को मिलके हराओ,

हर घर पर तिरंगा लहराओ.

जय भारत

|| जय हिंद ||



31 राज्य

1618 भाषाएँ

6400 जातियां

6 से भी अधिक धर्म

29 से भी ज्यादा त्यौहार

1 देश.......

PROUD TO BE AN INDIAN

Because it happens only in INDIA


*Happy Republic Day*

|| गणतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं ||
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Shirdi Sai Baba Settled in Shirdi

ॐ सांई राम
 

Shirdi Sai Baba Settled in Shirdi

 

In 1858 SaiBaba returned to Shirdi with Chand Patil's wedding procession. After alighting near the Khandoba temple he was greeted with the words "Ya Sai" (welcome saint) by the temple priest Mhalsapati. The name Sai stuck to him and some time later he started being known as SaiBaba. It was around this time that Baba adopted his famous style of dress, consisting of a knee-length one-piece robe (kafni) and a cloth cap. Ramgir Bua, a devotee, testified that SaiBaba was dressed like an athlete and sported 'long hair flowing down to his buttocks' when he arrived in Shirdi, and that he never had his head shaved. It was only after SaiBaba forfeited a wrestling match with one Mohdin Tamboli did he take the kafni and cloth cap, articles of typically Sufi clothing.
This attire contributed to SaiBaba's identification as a Muslim fakir, and was a reason for initial indifference and hostility against him in a predominantly Hindu village. According to B.V. Narasimhaswami, a posthumous follower who was widely praised as Sai Baba's "apostle", recorded that this attitude was prevalent even among some of his devotees in Shirdi even up to 1954.


For four to five years SaiBaba lived under a neem tree, and often wandered for long periods in the jungle in and around Shirdi. His manner was said to be withdrawn and uncommunicative as he undertook long periods of meditation.
He was eventually persuaded to take up residence in an old and dilapidated masjid and lived a solitary life there, surviving by begging for alms and receiving itinerant Hindu or Muslim visitors. In the mosque he maintained a sacred fire which is referred to as a dhuni, from which he had the custom of giving sacred ash ('Udhi') to his guests before they left and which was believed to have healing powers and protection from dangerous situations.
At first he performed the function of a local hakim and treated the sick by application of Udhi. SaiBaba also delivered spiritual teachings to his visitors, recommending the reading of sacred Hindu texts along with the Qur'an, especially insisting on the indispensability of the unbroken remembrance of God's name (dhikr, japa). He often expressed himself in a cryptic manner with the use of parables, symbols and allegories. He participated in religious festivals and was also in the habit of preparing food for his visitors, which he distributed to them as prasad. SaiBaba's entertainment was dancing and singing religious songs (he enjoyed the songs of Kabir most).
His behaviour was sometimes uncouth and violent.


After 1910 SaiBaba's fame began to spread in Mumbai. Numerous people started visiting him, because they regarded him as a saint (or even an avatar) with the power of performing miracles.

Sai Baba took Mahasamadhi on
October 15, 1918 at . He died on the lap of one of his devotees with hardly any belongings, and was buried in the "Buty Wada" according to his wish.

Later a mandir was built there known as the "Samadhi Mandir".


Sai Mandir Naasik..


Saturday, January 22, 2011

साईं विभूति मंत्र

ॐ सांई राम
 
साईं विभूति मंत्र
 
परमम्  पवित्रम बाबा  विभूतिम
परमम्  विचित्रं  लीला  विभूतिम
परमार्थ  इश्तार्था  मोक्ष  प्रधानम
बाबा  विभूतिम  इद्धम  अस्रयामी

Meaning:
I take refuge in the supremely sacred Vibhuthi of Lord Baba, the wonderful Vibhuthi, which bestows salvation, the sacred state which I desire to attain.

 
 
English version:
Sacred Ash, Miraculous, Baba's Creation
Flowing From His Blessed Hand, Holy Creation
Granting Us The Greatest Wealth, God's Divine Protection
Beloved Baba, Grant Us Liberation
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Friday, January 21, 2011

Know more about Baba....

ॐ सांई राम




Shirdi Sai baba's Background




Historical researches into genealogies in Shirdi give support to the theory that Baba could have been born with the name Haribhau Bhusari. SaiBaba was notorious for giving vague, misleading and contradictory replies to questions concerning his parentage and origins, brusquely stating the information was unimportant.
He had reportedly stated to a close follower, Mhalsapati, that he has been born of Brahmin parents in the village of Pathri and had been entrusted into the care of a fakir in his infancy. On another occasion, Baba reportedly said that the fakir's wife had left him in the care of a Hindu guru, Venkusa of Selu, and that he had stayed with Venkusa for twelve years as his disciple. This dichotomy has given rise to two major theories regarding SaiBaba's background, with the majority of writers supporting the Hindu background over the Islamic, while others combine both the theories (that Sai Baba was first brought up by a fakir and then by a guru).
SaiBaba reportedly arrived at the village of Shirdi in the Ahmednagar district of Maharashtra, India, when he was about sixteen years old.


Although there is no agreement among biographers about the date of this event, it is generally accepted that SaiBaba stayed in Shirdi for three years, disappeared for a year and returned permanently around 1858, which posits a possible birthyear of 1838.] He led an ascetic life, sitting motionless under a neem tree and meditating while sitting in an asana.


The Sai Satcharita recounts the reaction of the villagers: "The people of the village were wonder-struck to see such a young lad practicing hard penance, not minding heat or cold. By day he associated with no one, by night he was afraid of nobody."


His presence attracted the curiosity of the villagers and the religiously-inclined such as Mhalsapati, Appa Jogle and Kashinatha regularly visited him, while others such as the village children considered him mad and threw stones at him. After some time he left the village, and it is unknown where he stayed at that time or what happened to him.


However, there are some indications that he met with many saints and fakirs, and worked as a weaver; he claimed to have fought with the army of Rani Lakshmibai of

Jhansi during the Indian Rebellion of 1857. 
Although SaiBaba's origins are unknown, some indications exist that suggest that he was born not far from Shirdi.

Thursday, January 20, 2011

About Shirdi Ke Sai Baba

ॐ सांई राम




About Shirdi Ke Sai Baba

Shirdi Sai Baba, also known as Sai Baba of Shirdi, was an Indian guru, yogi and fakir who is regarded by his Hindu and Muslim followers as a saint. Some of his Hindu devotees believe that he was an incarnation of Shiva or Dattatreya, and he was regarded as a sadguru and an incarnation of Kabir.
The name 'Sai Baba' is a combination of Persian and Indian origin; Sāī (Sa'ih) is the Persian term for "holy one" or "saint", usually attributed to Islamic ascetics, whereas Bābā is a word meaning "father" used in Indian languages. The appellative thus refers to SaiBaba as being a "holy father" or "saintly father". His parentage, birth details, and life before the age of sixteen are obscure, which has led to a variety of speculations and theories attempting to explain the SaiBaba's origins. In his life and teachings he tried to reconcile Hinduism and Islam: SaiBaba lived in a mosque, was buried in a Hindu temple, practised Hindu and Muslim rituals, and taught using words and figures that drew from both traditions. One of his well known epigrams says of God: "Allah Malik" ("God is Master").
Sai Baba taught a moral code of love, forgiveness, helping others, charity, contentment, inner peace, devotion to God and guru. His philosophy was Advaita Vedanta and his teachings consisted of elements both of this school as well as of bhakti and Islam.
Shirdi SaiBaba remains a popular saint and is worshipped mainly in Maharashtra, southern Gujarat, Andhra Pradesh and Karnataka. Debate on his Hindu or Muslim origins continues to take place. He is also revered by several notable Hindu and Sufi religious leaders. Some of his disciples received fame as spiritual figures and saints.
Sri SaiBaba left his physical body in October 15, 1918.... but he is believed to be with us even more now than he was earlier...
 

गुरु देवा महेश्वर

ॐ सांई राम




भजो  भाई  बहन  गुरु  नाम 

भजो  साईं  चरण  सुख  धाम 

मुक्ति  प्रदायक  मोह  विदूरका 

भक्ता  परायण  साईं  नाम 

भजो रे  सदगुरु  साईं  चरणं 

पावन  चरणं, पद्मदल  चरणं 

मुक्ति  दायक  मोहना  चरणं 

पाप  विनाशका  साईं चरणं 



भजो रे  मानस  गुरु  चरणं 

सदगुरु  चरणं  भाव  भय  हरनाम 

सत्चिदानान्दा  परमानंदा 

सदगुरु  साईं  गुरु  चरणं 

साईं  गुरु  ब्रह्मा,  साईं  गुरु  विष्णु 

साईं  गुरु  देवो  महेश्वर 

साईं  गुरु  साक्षात  परब्रह्म 

सदगुरु  साईं  नाम  जपो 



ब्रह्मानंदा  गुरु  प्रेमानान्दा  गुरु 

साईं  गुरु  देवा  शरणम 

भजो  शंकर  हरी  हरा  शरणम 

विश्वनाथ  देवा  गौरी  मनोहर 

साईं  नाठा  बाबा  परमेश्वर 

भजो  शिव  शम्भो  शिव  शरणम 



गुरु  साईं  गुरु  बाबा 

चरण  नमोस्तुते  गुरु  बाबा 

साईं  बाबा  भोले  बाबा 

गुरु  वरा  गुरु  वरा  गुरु  बाबा 

विद्या  दायक  गुरु  बाबा 

शांत  स्वरूप  गुरु  बाबा 

गुरुवरा  गुरुवरा  गुरु बाबा 



गुरु  भगवान  श्री  साईं  राम

शिर्डी  निरंजन साईं  भगवान 

परम  दयाकर  साईं  भगवान 

मंगल  करो  प्रभु  मंगल धाम 

मोक्ष  विधायक  साईं  भगवान 



गुरु  ब्रह्मा  गुरु  विष्णु 

गुरु  देवा  महेश्वर

जय  देवा गुरु  देवा 

जय  शिर्डी साईश्वर

जय  जय  जय  करुनाकर 

जय जय जय अखिलेश्वर 

जय  जय  जय  शिर्डीश्वर 

जय  जय  जय  पर्थीश्वर 



गुरु  देवा  गुरु  गोविंदा 

मंगल  गिरिधर,

शिर्डी  पुरीश्वारा 

जय  साईं  शिव 

मंगल  रूपा 

श्री  साईं  देवा




गुरु  देवा  सदगुरु  देवा 

दया  करो  भगवान 

शांति  दो, शांति  दो,

शांति दो, मुझे दया  धना 

आनंदा  चन्द्र  सत्चिदानान्दा

आनंदा आनंदा साईं 

हे  गुरु  देवा  आनंदा

आनंदा साईं 

हे  भुवनेशा 

दया  करो  भगवान 

शांति  दो, शांति  दो,

शांति दो, मुझे  दया  धना 
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Wednesday, January 19, 2011

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।



ॐ सांई राम


एक बार एक भला आदमी नदी किनारे बैठा था। तभी उसने देखा एक बिच्छू पानी में गिर गया है। भले आदमी ने जल्दी से बिच्छू को हाथ में उठा लिया। बिच्छू ने उस भले आदमी को डंक मार दिया। बेचारे भले आदमी का हाथ काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।



भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए दुबारा उठा लिया। बिच्छू ने दुबारा उस भले आदमी

को डंक मार दिया। भले आदमी का हाथ दुबारा काँपा और बिच्छू पानी में गिर गया।



भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए एक बार फिर उठा लिया। वहाँ एक लड़का उस आदमी का बार-बार बिच्छू को पानी से निकालना और बार-बार बिच्छू का डंक मारना देख रहा था। उसने आदमी से कहा, "आपको यह बिच्छू बार-बार डंक मार रहा है फिर भी आप उसे डूबने से क्यों बचाना चाहते हैं?"
भले आदमी ने कहा, "बात यह है बेटा कि बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है बचाना। जब बिच्छू एक कीड़ा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ?"

 

मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।
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