शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Tuesday, April 27, 2010

ॐ सांई राम




ॐ सांई राम







साईं सुबह - साईं शाम,


हर पल में साईं राम,


जैसे काशी - जैसे मथुरा, 


वैसे साईं का शिर्डी धाम, 


सुबह शाम जो ले साईं नाम, 


ऐसे भक्त को "ॐ सांई राम"

ॐ सांई राम




ॐ सांई राम







साईं सुबह - साईं शाम,


हर पल में साईं राम,


जैसे काशी - जैसे मथुरा, 


वैसे साईं का शिर्डी धाम, 


सुबह शाम जो ले साईं नाम, 


ऐसे भक्त को "ॐ सांई राम"

ॐ सांई राम




ॐ सांई राम







साईं सुबह - साईं शाम,


हर पल में साईं राम,


जैसे काशी - जैसे मथुरा, 


वैसे साईं का शिर्डी धाम, 


सुबह शाम जो ले साईं नाम, 


ऐसे भक्त को "ॐ सांई राम"

Wednesday, April 21, 2010

निमंत्रण - श्री साईं नाथ महाराज जी की पालकी शोभा यात्रा




ॐ सांई राम


निमंत्रण - श्री साईं नाथ महाराज जी की







पालकी शोभा यात्रा





शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप अपने सभी सदस्यों एवम सभी साई भक्तो को सूचित करता है की श्री साईंनाथ महाराज की कृपा से रविवार, 2 मई 2010 को सायं 6:30 श्री साईं नाथ महाराज जी की पालकी शोभा यात्रा का आयोजन बड़े ही हर्षोलास से कर रहा है । पालकी यात्रा तनेजा बेकरी के सामने वाले पार्क (जनता फ्लेट्स) से बाबा जी की आरती के उपरांत आरंभ हो कर, डी. डी. ऐ., एल आई जी फ्लेट्स, हस्तसाल, हस्तसाल गांव, केन्द्रिये विद्यालय से होती हुई वापिस तनेजा बेकरी के सामने वाले पार्क (जनता फ्लेट्स) मे पूर्ण विराम लेगी।








पुन: बाबा जी की आरती के उपरान्त





बाबा जी के भोग का प्रशाद वितरन किया जायेगा।











शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप





आप सभी साईं भक्तों को सपरिवार एवं मित्रों सहित आमंत्रित करता है ।





आप सभी सपरिवार एवं मित्रों सहित उपस्थित होकर बाबा जी का





आशीर्वाद प्राप्त करें एवम बाबा जी की पालकी शोभा यात्रा को सफल बनाये।

Wednesday, April 14, 2010

Sai Sandesh : योग और प्याज




ॐ सांई राम





योग और प्याज







एक समय एक योगाभ्यासी नाना साहेब चांदोरकर के साथ शिर्डी आया. उसने पतंजलि योगसूत्र तथा योगशास्त्र के अन्य ग्रंथों का विशेष अध्यन किया था, परन्तु वह व्यावहारिक अनुभव से वंचित था. मन एकाग्र ना हो सकने के कारण वह थोड़े समय के लिए भी समाधी नहीं लगा सकता था. यदि सैबबा कि कृपा प्राप्त हो जाये तो उनसे थोड़ी अधिक समय तक समाधी अवस्था प्राप्त करने कि विधि ज्ञात हो जाएगी, इस विचार से वह शिर्डी आया और जब मस्जिद में पहुंचा तो साईं बाबा को प्याज सहित सूखी रोटी खाते देख कर उसे विचार आया कि यह कच्ची प्याजसहित सूखी रोटी खाने वाला व्यक्ति मेरी कठिनाई को किस प्रकार हल कर पायेगा? साईं बाबा अंतर्ज्ञान से उसका विचार जानकार तुरंत नानासाहेब से बोले कि " ओ नाना ! जिसमे प्याज हजम करने कि शक्ति है , उसको ही उसे खाना चाहिए, अन्य को नहीं." इन शब्दों से अत्यंत विस्मित होकर योगी ने साईं चरणों में पूर्ण आत्मसमर्पण कर दिया. शुद्ध और निष्कपट भाव से अपनी कठिनाइयाँ बाबा के समक्ष प्रस्तुत करके उनसे उनका हल प्राप्त किया, और इस प्रकार संतुष्ट और सुखी होकर बाबा के दर्शन और उदी लेकर वह शिर्डी से चला गया................. ॐ साईं राम











श्री सांई सच्चरित्र क्या कहती है ??





यूँ ही एक दिन चलते-चलते





सांई से हो गई मुलाकात।





जब अचानक सांई सच्चरित्र की





पाई एक सौगात।





फिर सांई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार।





तब सांई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार।





सांई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला।





सांई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला।





घर में गूँजने लगी हर वक्त सांई गान की धुन।





मन के तार झूमने लगे सांई धुन को सुन।





धीरे-धीरे सांई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा।





और सांई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा।





सांई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगा फिदा।





अब मेरे सांई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा।





हर घङी मिलता रहे मुझे सांई का संतसंग।





सांई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग।





सांई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश।





सांई मेरे प्राण हैं और सांई ही मेरे ईश।





भेदभाव से दूर रहूँ,शुद्ध हो मेरे विचार।





सांई ज्ञान की जीवन में बहती रहे ब्यार॥











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Sai Sandesh : योग और प्याज




ॐ सांई राम





योग और प्याज







एक समय एक योगाभ्यासी नाना साहेब चांदोरकर के साथ शिर्डी आया. उसने पतंजलि योगसूत्र तथा योगशास्त्र के अन्य ग्रंथों का विशेष अध्यन किया था, परन्तु वह व्यावहारिक अनुभव से वंचित था. मन एकाग्र ना हो सकने के कारण वह थोड़े समय के लिए भी समाधी नहीं लगा सकता था. यदि सैबबा कि कृपा प्राप्त हो जाये तो उनसे थोड़ी अधिक समय तक समाधी अवस्था प्राप्त करने कि विधि ज्ञात हो जाएगी, इस विचार से वह शिर्डी आया और जब मस्जिद में पहुंचा तो साईं बाबा को प्याज सहित सूखी रोटी खाते देख कर उसे विचार आया कि यह कच्ची प्याजसहित सूखी रोटी खाने वाला व्यक्ति मेरी कठिनाई को किस प्रकार हल कर पायेगा? साईं बाबा अंतर्ज्ञान से उसका विचार जानकार तुरंत नानासाहेब से बोले कि " ओ नाना ! जिसमे प्याज हजम करने कि शक्ति है , उसको ही उसे खाना चाहिए, अन्य को नहीं." इन शब्दों से अत्यंत विस्मित होकर योगी ने साईं चरणों में पूर्ण आत्मसमर्पण कर दिया. शुद्ध और निष्कपट भाव से अपनी कठिनाइयाँ बाबा के समक्ष प्रस्तुत करके उनसे उनका हल प्राप्त किया, और इस प्रकार संतुष्ट और सुखी होकर बाबा के दर्शन और उदी लेकर वह शिर्डी से चला गया................. ॐ साईं राम











श्री सांई सच्चरित्र क्या कहती है ??





यूँ ही एक दिन चलते-चलते





सांई से हो गई मुलाकात।





जब अचानक सांई सच्चरित्र की





पाई एक सौगात।





फिर सांई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार।





तब सांई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार।





सांई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला।





सांई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला।





घर में गूँजने लगी हर वक्त सांई गान की धुन।





मन के तार झूमने लगे सांई धुन को सुन।





धीरे-धीरे सांई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा।





और सांई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा।





सांई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगा फिदा।





अब मेरे सांई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा।





हर घङी मिलता रहे मुझे सांई का संतसंग।





सांई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग।





सांई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश।





सांई मेरे प्राण हैं और सांई ही मेरे ईश।





भेदभाव से दूर रहूँ,शुद्ध हो मेरे विचार।





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ॐ सांई राम





योग और प्याज







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यूँ ही एक दिन चलते-चलते





सांई से हो गई मुलाकात।





जब अचानक सांई सच्चरित्र की





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फिर सांई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार।





तब सांई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार।





सांई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला।





सांई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला।





घर में गूँजने लगी हर वक्त सांई गान की धुन।





मन के तार झूमने लगे सांई धुन को सुन।





धीरे-धीरे सांई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा।





और सांई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा।





सांई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगा फिदा।





अब मेरे सांई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा।





हर घङी मिलता रहे मुझे सांई का संतसंग।





सांई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग।





सांई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश।





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ॐ सांई राम





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श्री सांई सच्चरित्र क्या कहती है ??





यूँ ही एक दिन चलते-चलते





सांई से हो गई मुलाकात।





जब अचानक सांई सच्चरित्र की





पाई एक सौगात।





फिर सांई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार।





तब सांई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार।





सांई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला।





सांई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला।





घर में गूँजने लगी हर वक्त सांई गान की धुन।





मन के तार झूमने लगे सांई धुन को सुन।





धीरे-धीरे सांई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा।





और सांई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा।





सांई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगा फिदा।





अब मेरे सांई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा।





हर घङी मिलता रहे मुझे सांई का संतसंग।





सांई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग।





सांई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश।





सांई मेरे प्राण हैं और सांई ही मेरे ईश।





भेदभाव से दूर रहूँ,शुद्ध हो मेरे विचार।





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Tuesday, April 13, 2010

Be A God


ॐ सांई राम




Once, a dog came to Lord Rama bleeding from blows. Lakshmana (Rama’s brother) was sent to enquire why it had to receive such blows.







The dog said: "I was beaten by a Brahmin (the priestly class in a Hindu society) with a stick."





The Brahmin was questioned. He said that the dog was always annoying him by coming across his path. Rama asked the dog: "Well,





how do you want to punish the Brahmin?"





The dog said: "Make him a manager of a temple."





Rama replied with wonder: "That would be a reward, not a punishment.





The dog said: "No, I was a manager of a temple in my previous birth. It was impossible not to mishandle or misuse or misappropriate some





fraction of God's money. When he is that manager, he too will get, like me, this canine birth and perhaps get beaten too in his subsequent birth."





In fact, not only the dog or the Brahmin, but every one of us are lining off the property of God, for does not all this belong to Him? What do we





do in return for all benefits we derive from the property of the Lord? We should not simply eat and sit quiet. We have to render service to the





poor and the helpless in a manner suitable to us.





~ Baba






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ॐ सांई राम




Once, a dog came to Lord Rama bleeding from blows. Lakshmana (Rama’s brother) was sent to enquire why it had to receive such blows.







The dog said: "I was beaten by a Brahmin (the priestly class in a Hindu society) with a stick."





The Brahmin was questioned. He said that the dog was always annoying him by coming across his path. Rama asked the dog: "Well,





how do you want to punish the Brahmin?"





The dog said: "Make him a manager of a temple."





Rama replied with wonder: "That would be a reward, not a punishment.





The dog said: "No, I was a manager of a temple in my previous birth. It was impossible not to mishandle or misuse or misappropriate some





fraction of God's money. When he is that manager, he too will get, like me, this canine birth and perhaps get beaten too in his subsequent birth."





In fact, not only the dog or the Brahmin, but every one of us are lining off the property of God, for does not all this belong to Him? What do we





do in return for all benefits we derive from the property of the Lord? We should not simply eat and sit quiet. We have to render service to the





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The Brahmin was questioned. He said that the dog was always annoying him by coming across his path. Rama asked the dog: "Well,





how do you want to punish the Brahmin?"





The dog said: "Make him a manager of a temple."





Rama replied with wonder: "That would be a reward, not a punishment.





The dog said: "No, I was a manager of a temple in my previous birth. It was impossible not to mishandle or misuse or misappropriate some





fraction of God's money. When he is that manager, he too will get, like me, this canine birth and perhaps get beaten too in his subsequent birth."





In fact, not only the dog or the Brahmin, but every one of us are lining off the property of God, for does not all this belong to Him? What do we





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how do you want to punish the Brahmin?"





The dog said: "Make him a manager of a temple."





Rama replied with wonder: "That would be a reward, not a punishment.





The dog said: "No, I was a manager of a temple in my previous birth. It was impossible not to mishandle or misuse or misappropriate some





fraction of God's money. When he is that manager, he too will get, like me, this canine birth and perhaps get beaten too in his subsequent birth."





In fact, not only the dog or the Brahmin, but every one of us are lining off the property of God, for does not all this belong to Him? What do we





do in return for all benefits we derive from the property of the Lord? We should not simply eat and sit quiet. We have to render service to the





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Thursday, April 1, 2010

धर्म स्थापन के लिए


ॐ सांई राम













जब लोग धर्म कर्म मे अरुचि के कारण मानव जीवन के उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करने मे असफल हो जाते है, तब धर्म स्थापन के लिए संत मानव जन्म धारण करते है |





 

"They lose the highest good because of the decline of dharma. In order to bring about a revival of dharma, the saints appear."





(CI 11, Adhaya 4 Sai Sachitra Dr R.N.Kakria )














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जब लोग धर्म कर्म मे अरुचि के कारण मानव जीवन के उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करने मे असफल हो जाते है, तब धर्म स्थापन के लिए संत मानव जन्म धारण करते है |





 

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