श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ
गुरु अर्जन देव जी का ज्योति - ज्योत समाना
जब दिन निकला तो चंदू फिर अपनी बात मनाने के लिए गुरु जी के पास पहुँचा| परन्तु गुरु जी ने फिर बात ना मानी|उसने गुरु जी से कहा कि आज आपको मृत गाए के कच्चे चमड़े में सिलवा दिया जाएगा| उसकी बात जैसे ही गुरु जी ने सुनी तो गुरु जी कहने लगे कि पहले हम रावी नदी में स्नान करना चाहते है, फिर जो आपकी इच्छा हो कर लेना| गुरु जी कि जैसे ही यह बात चंदू ने सुनी तो खुश हो गया कि इन छालों से सड़े हुए शरीर को जब नदी का ठंडा पानी लगेगा तो यह और भी दुखी होंगे| अच्छा यही है कि इनको स्नान कि आज्ञा दे दी जाए|
चंदू ने अपने सिपाहियों को हुकम दिया कि जाओ इन्हे रावी में स्नान कर लाओ| तब गुरु जी अपने पांच सिखों सहित रावी पर आ गए|गुरु जी ने नदी के किनारे बैठकर चादर ओड़कर "जपुजी साहिब" का पाठ करके भाई लंगाह आदि सिखों को कहा कि अब हमरी परलोक गमन कि तैयारी है|आप जी श्री हरिगोबिंद को धैर्य देना और कहना कि शोक नहीं करना, करतार का हुकम मनना| हमारे शरीर को जल प्रवाह ही करना, संस्कार नहीं करना|
इसके पश्चात गुरु जी रावी में प्रवेश करके अपना शरीर त्याग कर सचखंड जी बिराजे| उस दिन ज्येषठ सुदी चौथ संवत १५५३ बिक्रमी थी| गुरु जी का ज्योति ज्योत समाने का सारे शहर में बड़ा शोक बनाया गया| गुरु जी के शरीर त्यागने के स्थान पर गुरुद्वारा ढ़ेरा साहिब लाहौर शाही किले के पास विद्यमान है|
सिखों ने गुरु साहिब की शहीदी की खबर माता जी और सिख संगतो को बताई तो सबको बड़ा दुख हुआ| बाबा बुड्डा जी ने सबको धैर्य देते हुए कहा आप गुरु जी की वाणी का ध्यान करो| गुरु जी लोक भलाई व परोपकार के कार्य के लिए अपने बैकुंठ धाम को गए हैं| इसलिए उनके लिए शोक करना उचित नहीं है| शोक उनके लिए करना उचित होता है जो अपनी सारी उम्र जगत के भोग विलास में लगाकर सत्संग और नाम सुमिरन के बिना ही व्यतीत कर जाते हैं| इस तरह भाई बुड्डा जी ने सबको समझाकर धैर्य दिया और शांत करके बिठाया|
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