ॐ नमः शिवाय
श्रावण महीना है, जो जुलाई-अगस्त माह में
पड़ता है। इसे वर्षा ऋतु या पावस ऋतु भी कहते हैं। श्रवण मास भगवान शिव को
विशेष प्रिय है। अत: इस मास में आशुतोष भगवान शंकर की पूजा का विशेष
महत्व है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से
उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव ने बताया कि जब देवी
सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे
पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया
था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती पार्वती के रूप में हिमालय की कन्या के
रूप में जन्मीं। उन्होंने युवावस्था में सावनके महीने में निराहार रह कर
कठोर व्रत करके शिवजी को प्रसन्न किया, जिसके बाद श्रवण मास शिवजी को प्रिय
हो गया।
शिव पुराण के अनुसार श्रवण मास में शिव की उपासना अत्यंत
फलदायी है। भोलेनाथ शीघ्र ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनवांछित फल
प्रदान करते हैं। आशुतोष भगवान शिव का त्रिगुण तत्व (सत, रज, तम) तीनों पर
समान अधिकार है। शिव मस्तिष्क पर चंद्रमा को धारण करके शशिशेखर कहलाते हैं।
चंद्रमा से इन्हें विशेष स्नेह है, चंद्रमा जल तत्व ग्रह है एवं सावन में
जल तत्व की अधिकता होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार श्रवण त्रिदेव और पंच
देवों के प्रधान शिव की भक्ति को समर्पित है। महादेव के जलाभिषेक के पीछे
एक पौराणिक कथा का उल्लेख है- समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने पर
महादेव ने विष का पान किया, अग्नि के समान विष पीने के बाद भगवान शिव का
कंठ नीला पड़ गया। विषाग्नि से भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए सभी
देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पण किया। यह भी मान्यता है कि विष के प्रभाव
को शांत करने के लिए भगवान शंकर ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया। इसी
धारणा को आगे बढ़ाते हुए भगवान शंकराचार्य ने ज्योर्तिलिंग रामेश्वरम में
गंगा जल चढ़ा कर शिव के जलाभिषेक का महत्त्व बताया। शास्त्रों के अनुसार
भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान श्रवण मास में किया था। इसे
शिव भक्ति का पुण्य काल माना जाता है।
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