श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ
योगी को परमपद की प्राप्ति
श्री गुरु अर्जन देव जी ने अपने गुरु पिता के वचन याद किए कि हमारी सेवा इन तीर्थों की सेवा है| इस प्रकार अमृत सरोवर के बाद संतोखसर तीर्थ की सेवा आरम्भ करने का विचार बनाया| इस सरोवर को श्री गुरु राम दास जी द्वारा आरम्भ कराया गया था| खोदे हुए गड्डे में वर्षा का पानी एकत्रित हो गया तथा चारों और बेरियों और वृक्षों के झुण्ड थे|
सेवा का ऐसा विचार रखते हुए श्री गुरु अर्जन देव जी कुछ सिखों को साथ लेकर एक टाहली के नीचे आ बैठे| बहुत से मजदूरों और कुछ सिख सेवकों को सरोवर खोदने के लिए लगा दिया गया| सभी जोश व लगन के साथ सरोवर की खुदाई में लगे हुए थे|
एक दिन मिट्टी के नीचे से एक गोलाकार मठ निकला जिसमे योगी समाधि लगाये बैठा था| गुरु जी ने उसको मखन, कस्तूरी व केसर की मालिश उसके सिर व पैरों पर कराकर समाधि खुलवाई| जब उस योगी ने बाबा बुड्डा जी व गुरु जी को सामने खड़ा पाया तो पूछने लगा कि यह कोनसा युग है और आप कौन हैं| बाबा जी ने बताया अब कलयुग है तथा जो उनके पास खड़े हैं वह श्री गुरु नानक देव जी की गद्दी पर विराजमान पाँचवे गुरु अर्जन देव जी हैं|
उस योगी ने जैसे ही बाबा जी की बात सुनी तो झट से कहा कि मेरा तप पूरण हो गया है| मेरे गुरु का वचन हुआ था कि जब कलियुग आएगा तो तुम गुरु अवतार के दर्शन करोगे और तभी तुम्हारा कल्याण होगा| आज वह समय आ गया है| मेरे मन को शांति मिली है| यह वचन करके योगी ने हाथ जोड़ दिए और गुरु जी को नमस्कार की| इसके पश्चात अपना शरीर त्यागकर परमपद को प्राप्त हो गया|
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