श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ
झूठ का त्याग व उपदेश
एक दिन भाई पुरीआ और चूहड़ पट्टी से गुरु जी के दर्शन करने आए| उन्होंने गुरु जी के आगे भेंट रखी व माथा टेका| उन्होंने गुरु जी से प्रार्थना की कि महाराज! हम अपने गाँव के चौधरी है और हमें झूठ भी बहुत बोलना पड़ता है| हम इसका त्याग किस प्रकार करें?
उनकी यह बात गुरु जी ने सुनी और कहने लगे कि आप अपने नगर में एक धर्मशाला बनवाओ| उसमे दो समय सत्संग भी किया करो| आप रोजाना जो झूठ बोलते हे वह दीवान में संगत में सुनाया करो|
गुरु जी कि बात को वह ध्यानपूर्वक सुनते रहे| उन्होंने ऐसे ही किया जैसे गुरु जी ने उनको बोला था| धर्मशाला बनवाई गई| उसमे दो समय सत्संग भी रखा गया| उन्होंने अपना झूठ भी संगत के सामने रखना शरू कर दिया|
जब कुछ दिन ऐसा ही होता रहा,वे लज्जा अनुभव करने लगे| उन्होंने झूठ बोलना कम कर दिया|वे कम से कम झूठ बोलने का यत्न करते| ऐसा करते-२ उनकी झूठ बोलने की आदत ही खतम हो गए|अब वे सच बोलने के आदि हो गए| उन्होंने गुरु जी का लाख-२ शुकराना किया|
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