शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Saturday, May 4, 2013

श्री साईं लीलाएं - घोड़े की लीद का रहस्य




ॐ सांई राम






कल हमने पढ़ा था.. धर्मग्रंथ गुरु के बिना पढ़ना बेकार है   




















श्री साईं लीलाएं











घोड़े की लीद का रहस्य




अनंतराव पाटणकर पूना
के रहनेवाले थे| उन्होंने वेद और उपनिषदों का अध्ययन कर लिया था| उनका
तत्वज्ञान भी समझ लिया था| लेकिन इतना सब करने के बाद भी उनका मन शांत न
था|

उनके मन में साईं बाबा के दर्शन करने की प्रबल इच्छा थी| बाद
में उन्होंने शिरडी में जाकर साईं बाबा के दर्शन किये, तो उन्हें बहुत
प्रसन्नता हुई| बाबा की चरणवंदना करने के बाद वे बाबा से बोले - "बाबा !
मैंने वेद, पुराण, उपनिषद् आदि अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया है, सुना भी है
लेकिन मेरे मन को शांति नहीं मिली| इसलिए मेरी सारी मेहनत करनी व्यर्थ हो
रही है| यह मैं समझ भी गया हूं| इसीलिए मैं आपकी शरण में आया हूं, अब आप ही
मुझे कोई रास्ता बताइये और मेरे मन को शांति मिले, ऐसा आप आशीर्वाद भी
दीजिये|"

तब साईं बाबा ने उसे एक कथा सुनायी| जो इस प्रकार है -
"एक बार एक सौदागर यहां आया था| उसकी घोड़ी ने उसके सामने ही लीद के नौ
गोले डाल दिये| सौदागर बहुत जिज्ञासु प्रवृति था| उसने तुरंत दौड़कर अपनी
धोती का एक छोर बिछाकर उसने लीद के वे नौ गोले रख लिए| इससे उसके मन को
बड़ी शांति मिली|" इतना कहकर बाबा चुप हो गये|

पाटणकर ने इस पर
बहुत सोच-विचार किया, परन्तु वह इस कथा का मर्म समझने में असफल ही रहे|
उन्होंने दादा केलकर से इस कथा का अर्थ समझाने का निवेदन किया| इस पर दादा
केलकर ने कहा, बाबा जो कुछ भी कहते हैं उसका अर्थ ठीक से मैं भी नहीं समझ
पाता हूं| फिर भी बाबा ने जो कुछ कहा और जितना मैं समझ पाया हूं, वह मैं
तुम्हें बताता हूं| वे बोले कि घोड़ी से अर्थ है - परमात्मा की कृपा| नौ
गोलों का अर्थ है - नवद्या भक्ति| नवद्या भक्ति इस प्रकार से है - श्रवण,
कीर्तन, नामस्मरण, पाद-सेवन, अर्चन, वंदन, सेवा, संयम व आत्म-निवेदन| यही
भक्ति के नौ प्रकार हैं|

जब तक इनमें किस भी भक्ति के द्वारा
स्वयं को परमात्मा से जोड़ा न जाए, तो वह कृपा नहीं करता| जब तक मन में
ईश्वर के प्रति भक्ति और प्रेम-भाव नहीं रहेगा| तब तक जब, तप, व्रत, योग,
वेद-पुराण आदि पढ़ना-पढ़ाना सब व्यर्थ है| देवता प्यार के भूखे होते हैं,
बिना लगन से किया हुआ भजन देवता को आकर्षित नहीं कर सकता - और जो ईश्वर से
प्रेम करता है, उसे फिर किसी साधन की आवश्यकता नहीं पड़ती| इन नौ साधनों
में से किसी एक पर मन से किया गया प्रयास ही पर्याप्त है| ईश्वर उसी से
संतुष्ट होता है| ईश्वरभक्ति ही सर्वोपरि है| सबके प्रति मन में प्रेमभाव
रखोगे तो मन शांत होगा| स्वयं को सौदागर की उत्सुकतापूर्वक सत्य को खोजकर
नवद्या भक्ति को पा जाओ| तभी मन स्थिर होकर मानसिक शांति मिलेगी| बाबा ने
तुम्हें यही भक्ति का संदेश दिया है|" दादा से यह सब सुनकर पाटणकर खुश हो
गये|

दूसरे दिन जब पाटणकर बाबा के दर्शन करने मस्जिद गये तो बाबा
ने पूछा - "क्यों, क्या तुमने लीद के नौ गोले बांध लिये?" बाबा के इस
प्रश्न का संकेत समझकर पाटणकर बोले - "बाबा ! आपकी कृपा के बिना यह कैसे
संभव हो सकता है?" इस पर बाबा हँस पड़े और उसका कल्याण हो, इसके लिए बाबा
ने आशीर्वाद दिया| पाटणकर ने बाबा के श्रीचरणों पर अपना सिर झुका दिया|





कल चर्चा करेंगे..लोग दक्षिणा भी देते थे और गालियाँ भी       















ॐ सांई राम





===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===


बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।



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