शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Thursday, May 2, 2013

श्री साईं लीलाएं - दासगणु को ईशोपनिषद का रहस्य नौकरानी द्वारा सिखाना




ॐ सांई राम






























कल हमने पढ़ा था.. किसी से बुरा मत बोलो







































श्री साईं लीलाएं





























दासगणु को ईशोपनिषद का रहस्य नौकरानी द्वारा सिखाना

एक
बार दासगणु जी महाराज ने ईशोपनिषद् पर 'ईश्वास्य-भावार्थ-बोधिनी टीका'
लिखनी शुरू की| इस ग्रंथ पर टीका लिखना वास्तव में बहुत ही कठिन कार्य है|
दासगणु ने ओवी छंदों में इसकी टीका तो की, पर सारतत्व उनकी समझ में नहीं
आया| टीका लिखने के बाद भी उन्हें आत्मसंतुष्टि नहीं हुई| अपनी शंका के
समाधान के लिए उन्होंने अनेक विद्वानों से परामर्श किया, परन्तु उसका कोई
समाधान नहीं हो सका|

जब दासगणु को किसी भी तरह से संतुष्टि न हुई
हो उन्होंने अपने मन में विचार किया कि इस समस्या का समाधान वही कर सकता
है, जिसने आत्म-साक्षात्कार कर लिया हो, क्योंकि उपनिषद् एक ऐसा शास्त्र है
जिसका रहस्य जानने से जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है| इसलिए उन्होंने
शिरडी जाने का निर्णय का लिया| फिर अवसर पाते ही वह शिरडी जा पहुंचे - और
साईं बाबा के दर्शन करके चरणवंदना की| फिर उपनिषद् पर टीका लिखने पर आयी
समस्या और अपनी शंका के लिए बाबा से प्रार्थना की - "बाबा आप यदि मेरी
समस्या का समाधान कर दें तो मेरे सारे परिश्रम पूर्णता होंगे| आप तो सब कुछ
जानने वाले हैं| अप आप ही कुछ करें|"

सब कुछ सुनने के बाद साईं
बाबा ने उन्हें अपना आशीर्वाद देते हुए आश्वासन दिया - "इसमें फिक्र करने
की कोई जरूरत नहीं है| इसमें कठिनाई ही क्या है, जब तुम वापस लौटोगे तो
बिलपार्ले में रहने वाले काका साहब दीक्षित की नौकरानी तुम्हारी समस्या का
समाधान कर देगी|"

बाबा के श्रीमुख से ऐसे वचन सुनकर दासगणु हैरान
रह गये| उन्होंने अपने मन में सोचा, 'कहीं बाबा मजाक तो नहीं कर रहे| क्या
एक साधारण अनपढ़ नौकरानी, उपनिषद् का रहस्य सुलझा देगी? जो मैं न जान सका,
जहां विद्वानों की बुद्धि हार गयी, वह यह कैसे करेगी?' लेकिन बाबा की बात
तो ब्रह्म वाक्य होते हैं| अत: वे कभी असत्य नहीं हो सकते| उन्हें बाबा का
पूर्ण विश्वास था|

बाबा के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा रखकर दासगणु
शिरडी से मुम्बई के विलेपार्ले में काका साहब दीक्षित के घर पहुंचे| अगले
दिन जब वे सुबह के समय उठे तो उन्हें किसी बालिका द्वारा गीत गाने की आवाज
सुनाई दी| गीत का भाव यह था कि वह लाल साड़ी कितनी सुंदर थी, उसका जरी वाला
आंचल कितना सुंदर था, उसके किनारे कितने सुंदर थे| दासगणु को यह गीत बड़ा
अच्छा लगा और वे धीरे-धीरे गीत के बोल पर झूमने लगे| मन को अद्भुत आनंद
प्राप्त हुआ| जब उन्होंने बाहर आकर देखा तो वह गीत काका साहब दीक्षित की
नाम्या नाम की नौकर की बहन बर्तन मांजते हुए गा रही थी| वह मात्र आठ वर्ष
की थी और अपने तन को एक फटी-पुरानी साड़ी से ढके हुए थी| दरिद्रता की ऐसी
अवस्था में भी वह कितनी खुश थी| उसको खुश देखकर दासगणु का मन दया से भर
गया| अगले दिन दासगणु ने भोरेश्वर विश्वनाथ प्रधान से एक अच्छी-सी साड़ी
मंगवाकर उस लड़की को दे दी| जब उस बालिका को साड़ी दी तो वह इतनी खुश हुई
जितनी खुशी भूखे को भोजन मिलने पर होती है| दूसरे दिन उसने वह नई साड़ी
पहनी और नाचने-कूदने लगी, गाती रही|

फिर अगले दिन उसने नई साड़ी
को संभालकर रख दिया और पहले की तरह फटी-पुरानी उसी साड़ी को पहनकर काम पर
आयी| लेकिन नई साड़ी पाने से जो खुशी कल उसके चेहरे पर झलक रही थी, वह आज
भी विद्यमान थी| उसे देखकर दासगणु की दया आश्चर्य में बदल गयी|


दासगणु विचारने लगे कि गरीबी के कारण उसे फटे-पुराने वस्त्र पहनने पड़ते
थे| लेकिन अब तो उसके पास नयी साड़ी थी, फिर भी उसने नई साड़ी को संभालकर
रख दिया था और फटे-पुराने कपड़े पहनकर भी उसके आनंद में कोई कमी नहीं आई
थी| उसके चेहरे पर दुःख या निराशा का भाव जरा-सा भी नहीं था| उसे दोनों
स्थितियों में खुश देखकर दासगणु समझ गये कि सुख और दुःख केवल अपनी
मनोस्थिति पर निर्भर हैं| फिर ईशावास्य का रहस्य उनकी समझ में आ गया और वह
इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि परमात्मा ने जो कुछ दिया है, उसी में संतुष्ट
रहना चाहिए और जो भी जैसी भी स्थिति है, उसी परमात्मा का कृपा-प्रसाद है|
वह स्थिति निश्चित ही सुखद रहेगी| फिर वे विचार करने लगे, बालिका की निर्धन
अवस्था, उसके फटे-पुराने कपड़े, नई साड़ी देने वाला और उसकी स्वीकृति देने
वाला आदि ये सब उस परमात्मास द्वारा निर्देशित था|

दासगणु को उस
नौकरानी द्वारा प्रत्यक्ष में यह शिक्षा मिली कि जो कुछ स्वयं के पास है,
उसी में संतुष्ट रहना चाहिए, उसी में कल्याण है| साईं बाबा उसको स्वयं इसका
अर्थ बता सकते थे| चाहे वे कितने शब्दों का उपयोग करते तो भी तत्वज्ञान
उनकी समझ में नहीं आता, जितना एक अनुभव से आ गया| इसलिए उन्होंने दासगणु को
काका साहब की नौकरानी के पास भेजा था| परमात्मा कण-कण में मौजूद है| यह
सारा संसार उस परमात्मा के द्वारा ही संचालित हो रहा है और वही सबके
अंतर्मन में समाकर यह खेल खेलता है| बाबा और उस नौकरानी में कोई अंतर नहीं
है - यही समझाने के लिए दासगणु को बाबा ने वहां भेजा था|


















कल चर्चा करेंगे..धर्मग्रंथ गुरु बिना पढ़ना बेकार       















ॐ सांई राम






===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===


बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।



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