ॐ सांई राम
कल हमने पढ़ा था.. दासगणु को ईशोपनिषद का रहस्य नौकरानी द्वारा सिखाना
श्री साईं लीलाएं
धर्मग्रंथ गुरु के बिना पढ़ना है बेकार
एक तहसीलदार
(व्ही.एच.ठाकुर) रेवेन्यू विभाग में कार्यरत थे| बहुत पढ़े-लिखे होकर भी
उन्हें सत्संग से बहुत लगन थी| इसलिए अपने विभाग के साथ जहां कहीं भी जाते,
यदि वहां किसी संत महात्मा के बारे में सुनते तो उनके दर्शन अवश्य करते|
एक बार वे अपने ऑफिस के कार्य से जिला बेलगांव के पास बड़गांव गये| कार्य
से निपटकर वे उसी गांव में कानडी संत अप्पा जी के दर्शन कर उनकी चरण-वंदना
की| उस समय वे महात्मा निश्चलदास रचित 'विचार सागर' ग्रंथ का अर्थ अपने
भक्तों के समक्ष कर रहे थे| यह वेदांत से संबंधित ग्रंथ है| कुछ देर बैठने
के बाद जब उन्होंने जाने के लिए महात्मा जी से अनुमति मांगी तो उन महात्मा
ने उन्हें अपना ग्रंथ देते हुए कहा - "तुम इस ग्रंथ का अध्ययन करो|
तुम्हारी सब मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी| इतना ही नहीं, भविष्य में जब तुम
उत्तर दिशा की ओर जाओगे, तो तुम्हारी एक महापुरुष से भेंट होगी| वे तुम्हें
परमार्थ की राह दिखायेंगे|" ठाकुर साहब ने स्वयं को सौभाग्यशाली समझकर वह
ग्रंथ बड़े प्रेम से माथे से लगाकर स्वीकार किया और बड़े आदर के साथ
महात्मा जी से आशीर्वाद प्राप्त कर विदा हुए|
कुछ समय बाद ठाकुर
का तबादला कल्याण तहसील में उच्च पद पर हो गया, जो मुम्बई के नजदीक है|
वहां पर उनकी भेंट साईं बाबा के भक्त नाना साहब चाँदोरकर से हुई| चाँदोरकर
से साईं बाबा की लीलाएं सुनकर उनके मन में साईं बाबा के दर्शनों की तीव्र
इच्छा हुई| उन्होंने चाँदोरकर से अपनी इच्छा प्रकट कर दी| अगले ही दिन
चाँदोरकर शिरडी जाने वाले थे| उन्होंने ठाकुर से भी शिरडी चलने को कहा| इस
पर ठाकुर ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा - "नाना साहब ! यह अवसर तो अच्छा
है, लेकिन क्या करूं? ठाणे की एक अदालत में पेशी है और मेरा उस मुकदमे के
सिलसिले में उपस्थित होना जरूरी है| इसलिए चाहते हुए भी न चल सकूंगा|"
चाँदोरकर ने कहा - "आप मेरे साथ चलिये तो सही| बाबा के दर्शन को जाने पर उस
दावे की क्या बात है, बाबा सब संभाल लेंगे| ऐसा विश्वास रखो, और चलो मेरे
साथ|" लेकिन ठाकुर की समझ में यह बात नहीं आयी| वे बोले - "अदालत के कानून
तो आप जानते ही हैं| यदि तारीख निकल गयी तो आगे बहुत चक्कर लगाने पड़ेंगे|"
और वे अपने निर्णय पर अड़े रहे|
फिर चाँदोरकर अकेले ही चले गये|
इधर जब ठाकुर ठाणे की अदालत पहुंचे तो पता चला कि आगे की तारीख मिल गयी है|
तब उन्हें इस बात का बड़ा पछतावा हुआ, कि नाना कि बात मान लेता तो अच्छा
होता| फिर वे यह सोच शिरडी पहुंचे कि साईं बाबा के दर्शन भी कर लेंगे और
नाना साहब भी मिल जायेंगे| जब वे शिरडी गये तो पता चला कि नाना साहब तो
वापस लौट चुके थे| इसलिए उनसे भेंट न हो पायी| फिर वे मस्जिद में बाबा के
दर्शन करने के लिए गये| बाबा के दर्शन और चरणवंदना कर उन्हें बड़ी
प्रसन्नता हुई और उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी|
बाबा
बोले - "उस कानडी अप्पा का दिया हुआ 'विचारसागर' ग्रंथ पढ़ चुके हो क्या?
उसका मार्ग तो भैंसे की पीठ पर चढ़कर घाट पार करना है| लेकिन यहां का मार्ग
बहुत संकरीला है| उस पर चलना आसान नहीं है| इस पर चलने के लिए तुम्हें
कठोर श्रम करना पड़ेगा| यहां कष्ट-ही-कष्ट हैं|" साईं बाबा के ऐसे वचन
सुनकर ठाकुर को बहुत प्रसन्नता हुई| उनके वचन का मतलब वे समझ चुके थे|
उन्हें साईं बाबा के वचन सुनकर बड़गांव के कानडी महात्मा जी के वचन स्मरण
हो आये| उन्होंने जिस महापुरुष के बारे में कहा था वे साईं बाबा ही हैं|यह
बात उन्होंने अपने मन में धारण कर ली| फिर ठाकुर ने बाबा के चरणों में सिर
झुकाकर विनती की - "बाबा ! आप मुझ अनाथ पर कृपा करके मुझे अपना लो|"
फिर बाबा उसे समझाते हुए बोले - "अप्पा ने जो कहा था, वह सब सत्य है| जब
तुम उसके अनुसार आचरण करके साधना करोगे, तभी मनोकामनायें पूरी होंगी|
सद्गुरु के बिना किताब का ज्ञान व्यर्थ है| फिर गुरु-मार्गदर्शन से ग्रंथ
पढ़ना, सुनना और उस पर अमल करना| ये सब बातें फल देती हैं|" इस उपदेश के
बाद ठाकुर बाबा के परम भक्त बन गये|
कल चर्चा करेंगे... घोड़े की लीद का रहस्य
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।
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