शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Sunday, November 3, 2013

साखी राजा भक्तों की



ॐ श्री साँई राम जी 










साखी राजा भक्तों की




१. राजा परीक्षित-राजा परीक्षित अर्जुन (पांडव) का पौत्रा और अभिमन्यु का पुत्र था| महाभारत के युद्ध के बाद यह राजा बना| कलयुग में इसकी चर्चा हुई| पांडवों की संतान का यह एक महान पुरुष था, इसको हस्तिनापुर के सिंघासन पर बिठा कर पांचों पांडव द्रौपदी सहित हिमालय पर्वत को चले गए| यह कई साल राज करता रहा| इस बीच प्रजा को बहुत दुःख हुआ| यह कलयुग का मुख्य राजा था|

२. परूरवा - "दूरबा परूरउ अंगरै गुर नानक जसु गाईओ ||"परूरवा एक राजा हुआ था| वह उर्वशी अप्सरा पर मुग्ध हो गया| परूरवा 'ऐल' का पुत्र था| उर्वशी के वियोग में ही तड़पता रहा तथा इधर-उधर भटकता रहा| इसने प्रभु की भक्ति भी की है| इनके वीर्य से उर्वशी से इन राजकुमारों को जन्म दिया था - आयु, अमावस विश्वास, सतायु, द्रिढायु| राजा परूरवा बहुत बड़े महाबली हुए थे और उर्वशी का नाटक कालिदास ने लिखा था|

३. भगीरथ - भगीरथ राजा दलीप का पुत्र तथा राजा अंशमान का पौत्रा था| राजा अंशमान तथा राजा दलीप ने स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की थी पर वह बीच में ही मर गए तथा उनकी इच्छा पूरी न हो सकी| भगीरथ घोर तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से धरती पर लेकर आए, भगवान शिव जी की जटाओं का सहारा लेकर गंगा धरती पर आई| गंगा ने जहानुव ऋषि का आश्रम तथा पूजा की सामग्री बहा दी थी| इस पर जाहनुव ऋषि ने क्रोधित हो कर गंगा को पी लिया था| भगवान शिव जी तथा भगीरथ ने फिर जाहनुव ऋषि को मनाया, उसके पास से गंगा को मुक्त करवा कर धरती पर चलाया तथा भगीरथ ने अपने पूर्वज-पित्रों को जल दिया, जिससे उनका कल्याण हुआ|

४. मानधाता - मानधाता सुयवंशी राजा युवनाशु का पुत्र था| पर इसने मां के पेट से जन्म नहीं लिया, बल्कि राजा के पेट में से (पुरुष के पेट में से) जन्म लिया| यह कथा संक्षेप रूप में इस तरह है - राजा युवनाशु का कोई पुत्र-पुत्री नहीं था| उसने ऋषि-मुनि आमंत्रित करके एक ऋषि के आश्रम में महायज्ञ करवाया| यज्ञ के पश्चात महर्षियों ने पानी का घड़ा मंत्र पढ़ कर रखा| जिसका जल युवनाशु की रानी को पीने के लिए दिया जाना था| रात हुई तो सभी सो गए, ऋषि-मुनि भी सो गए| राजा युवनाशु को प्यास लगी, तो उसने उस मंत्र किए हुए घड़े में से पानी पी लिया| उस जल के कारण राजा के पेट में बच्चा बन गया| पेट चीर कर बच्चे को बाहर निकाला गया| उस बच्चे का नाम मानधाता था| मानधाता ने बिंदरासती से विवाह किया, उसके तीन पुत्र तथा पचास कन्याएं पैदा हुईं| पूर्व जन्म में प्रभु की अटूट भक्ति की थी जिस कारण इसकी बहुत शोभा हुई, यह भक्तों में गिना गया|

५. रुकमांगद - रुकमांगद करतूति राम जंपहु नित भाई
रुकमांगद राजा एकादशी का व्रत रखता था, कहते हैं कि वह ब्रह्मचारी था| यह कभी सपने में भी पराई स्त्री के निकट नहीं जाता था| अपनी स्त्री से बहुत ज्यादा प्यार करता था| एक बार एक अप्सरा उस पर मोहित हो गई, पर इस धर्मी राजा ने उसके प्यार और उसकी सुन्दरता को ठुकरा दिया| एकदशी के व्रत का उसे महत्व बता कर वापिस स्वर्ग लोक भेज दिया| उस दिन से एकादशी का व्रत आरम्भ हो गया| राजा आयु भर एकादशी का व्रत रखता रहा| उसका नाम भक्तों में बड़े आदर से लिया जाता है|

६. रावण-इक लखु पूत सवा लखु नाती ||
     तिह रावण घर दीआ न बाती ||

रावण लंका का दैत्य राजा था| इसकी माता का नाम कोक तथा पिता का नाम पुलसत्य था| यह तीन भाई थे, दूसरे दो भाईयों के नाम कुम्भकर्ण और विभीषण थे| रावण सीता को उठा कर लंका ले गया| श्री राम चन्द्र जी ने चढ़ाई की, युद्ध हुआ तथा रावण मारा गया| रावण के दस सिर थे, वह बली तथा विद्वान था| इसने चार वेदों की व्याख्या की इसके एक लाख पुत्र तथा सवा लाख पुत्रियां थीं, पर अन्याय एवं जुल्म करने के कारण उसकी सोने की लंका, स्वयं तथा पुत्र-पुत्रियां सब खत्म हो गए| सीता का हरण कर के लंका लेकर आना उसका महापाप था|

७. राजा अजय-अजै सु रोवै भीखिआ खाइ ||
    ऐसी दरगह मिलै सजाइ ||

राजा अजय, दशरथ के पिता तथा श्री राम चन्द्र जी के दादा थे| इसने एक साधू को घोड़ों की लीद अंजली भर कर दान कर दी थी| क्योंकि साधू ने उस समय भिक्षा मांगी जब राजा घोड़ों के पास था तथा लीद ही वहां थी| गुस्से में आकर उसने लीद दान में दे दी| साधू ने श्राप दिया तथा लीद कई गुणा रोज़ बढ़ती गई| कहते हैं कि वह लीद का दिया हुआ दान उसको खाना पड़ा, जब वह लीद खाता था तो रोया करता था तथा कहता था कि किसी संत-महात्मा के साथ नाराज होना ठीक नहीं, दिया हुआ दान आगे प्रभु के दरबार में मिलता है|

८. बाबा आदम-भक्त कबीर जी ने भैरऊ राग में बाबा आदम जी का जिक्र किया है|




"बाबा आदम कउ किछु नदरि दिखाई ||


उनि भी भिसति घनेरी पाई ||"

ईसारी धर्म की पुरानी पुस्तक 'अंजील' के मुख्य पात्र बाबा आदम जी हैं| 'अंजील' के अनुसार बाबा आदम जी की कथा इस प्रकार है-खुदा ने पहले मनुष्य बनाया था| खुदा पहले शैतान को भी बना बैठा था| मनुष्य बना कर खुदा ने सभी फरिश्तों (देवताओं) को कहा कि आदम को सलाम करो| सबने सलाम किया, पर शैतान ने सलाम न किया| अदन में स्वर्ग बना कर आदम ने जीवन साथी पहली स्त्री माई हवा को अदन के स्वर्ग बाग में भेज दिया| खुदा ने ज्ञान फल (गेहूं) खाने से आदम और हवा को रोका पर शैतान ने एक दिन आदम की अनुपस्थिति में अकेली हवा को उकसाया| अपनी हेराफेरी का शिकार बना कर कहा कि खुदा ने जो काम की चीज़ खाने वाली है उसे तो खाने से रोक दिया है, ज्ञान फल खा कर देखो, चारों कुण्ट का ज्ञान हो जायेगा, तुम जरूर आदम को कहना और ज्ञान फल खाने के लिए प्रेरित करना, यह कह कर शैतान अलोप हो गया| हवा के दिल में ज्ञान फल खाने की तीव्र इच्छा पैदा हो गई| जब आदम मिला तो हवा ने उसे ज्ञान फल खाने के लिए मना लिया| आदम और हवा ने जब ज्ञान फल खा लिया तो उन्हें स्त्री-पुरुष, काम, मोह, लालच और शर्म आदि का ज्ञान हो गया| उनको अपने नग्न तन के बारे में ज्ञान हुआ तो एक दूसरे से दूर हो कर छिप गए| इस बात का खुदा को पता लग गया| खुदा स्वयं आया और दोनों को एक-दूसरे के निकट करके समझाया-शैतान का कहना मान कर आपने भारी भूल की है, जाओ अब स्वर्ग में नहीं रह सकते| स्त्री-पुरुष बन कर रहो और संतान पैदा करो| खुदा ने शैतान को सर्प योनि का श्राप दे दिया| आदम और हवा के हजारों पुत्र हुए जिन से संसार की जन-संख्या बढ़ी| खुदा का कहना न मानने के कारण आदम गुनाहगार था, इसलिए उसकी औलाद भी गुनाहगार है| उसका उद्धार सत्य तथा सिमरन के सहारे है|

९. अरुण पिंगला - अरुण पिंगला बल वाला पक्षी और भगवान गरुड़ का भाई है| सूर्य का रथवान बना हुआ है| पर यह पिंगला है, पिंगला होने के कारण इसके जीवन में अधूरापन है| बिनता के दो अण्डे हुए| बिनता के पति ने कहा कि हर अण्डा हजार साल से पहले न तोड़ना, पर बिनता ने एक अण्डा पांच सौ साल बाद तोड़ दिया| इसलिए अरुण का शरीर पूरा नहीं बना था| पर गरुड़ का अण्डा हजार साल बाद अपने आप टूटा था, वह पूर्ण पक्षी बना| पूर्व जन्म के श्राप के कारण सूर्य और गरुड़ उसकी कोई सहायता नहीं करते थे|

१०. इन्द्र रो पड़ा-सहंसर दान दे इन्द्र रोआइआया ||
इन्द्र देवताओं का बड़ा राजा था, पर अहल्या के साथ दुष्कर्म करने के कारण शरीर पर हजार भग हो गई थी| इस कष्ट के कारण रोता रहा था| हजार भग का श्राप उसको अहल्या के पति ऋषि गौतम ने दिया था| जैसा कि पीछे गौतम तथा अहल्या की कथा में बताया गया है| इससे शिक्षा मिलती है कि पर-नारी की ओर ध्यान नहीं करना चाहिए|

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