ॐ साँई राम जी
साखी कुबिजा मालिन की
प्रेम भक्ति के संसार में कुबिजा का नाम बड़ा आदर-सत्कार से लिया जाता है| कुबिजा मालिन के प्यार के गीत बनाकर कविजन गुनगुनाते हैं| गुरुबाणी में भी यह आता है, 'कुबजा ओधरी अंगसुट धार' (बसंतु राग) आओ, श्रद्धालु और भक्तो जनो! आज आपको कुबिजा की कथा सुनाते हैं| श्रद्धा और प्यार से जो स्त्री-पुरुष यह कथा श्रवण करेगा, उसके हृदय और आत्मा में प्यार उमड़ आएगा|
कुबिजा एक दासी थी| वह राजा कंस के राजमहल के बगीचे में मालिन का कार्य करती थी| सारे लोग उसको कुबिजा मालिन कह कर बुलाते थे| उसकी आयु आयु अभी अल्प थी और वह अल्पायु से ही अत्यन्त सुन्दर थी| लेकिन ईश्वर की ऐसी लीला कि वह कमर से कुबड़ी थी| वह कुबड़ी होकर चलती थी, तभी उसका नाम कुबिजा पड़ गया| उसकी बुद्धिमानी और सुन्दरता की हर कोई प्रशंसा करता था लेकिन जब उसके कुबड़ेपन को देखता तो ईश्वर को कोसता कि ऐसी सुन्दरता देकर कुब क्यों प्रदान किया| लेकिन ईश्वर की लीला को कोई भी नहीं जानता| वह खेल था जो समय के साथ होना था|
युवा होकर जब भगवान कृष्ण जी मथुरा पधारे तो एक दिन कृष्ण जी और कुबिजा का मेल हो गया| वह फूल और घिसा हुआ चंदन लेकर राजा कंस की ओर जा रही थी, उसने जैसे ही कृष्ण जी के दर्शन किए तो मानो उसके पैरों में जंजीर पड़ गई हो| उसके हृदय में मीठी-सी कंपकंपी हुई| उसके मोटे नर्गिस नयन मोहित होकर चुंधिया गए| वह उनको देखती रही| उसने एक फूल माला श्री कृष्ण जी के गले में डाल दी और साथ ही चन्दन का तिलक लगा दिया| तिलक लगाते समय यह याद न रहा कि तिलक राजा कंस को लगाना था| यदि राजा कंस को इस बारे में पता चला तो वह मौत के घाट उतरवा देगा| कंस बड़ा दुष्ट था अत्याचारी राजा था| परन्तु कुबिजा ने प्रभु को चन्दन और तिलक लगा ही दिया|
भगवान श्री कृष्ण ने जब उसका यह अनुराग देखा तो आप दयालु-कृपालु हो गए| उन्होंने कुबिजा मालिन की ओर निगाह भर कर देखा| प्रभु ने दया में आकर उसके कुबड़ापन को दूर करने के लिए विचार किया| आप विष्णु अवतार महांकाल शक्तियों के स्वामी थे| मालिन के एक पैर पर अंगूठा अपने चरण का रखकर कंधे से पकड़कर ऐसा खींचा कि वह एकदम सीधी हो गई| उसका कुबड़ापन उसी पल दूर हो गया| वह तो मानो मूर्छित-सी हो गई| भगवान कृष्ण की इस कृपा का यश करती हुई गीत गाने लगी और श्री कृष्ण जी के चरणों पर गिरकर उनको चूमने लगी| उसने श्रद्धा से हाथ जोड़कर श्री कृष्ण जी से विनती की-हे प्रभु! दासी को अपने चरणों में रखें| आप तो परमात्मा हैं, आप सृष्टि के पालक हैं|
श्री कृष्ण जी ने प्रसन्न होकर कहा - 'हे मालिन! धैर्य रखो| समय आएगा तो तुम्हारा प्रेम प्रवान होगा| अभी शीघ्र जाओ और कंस को तिलक लगाने तुम जा रही थी, सामग्री लेकर उसे तिलक लगाओ|
यह कहकर भगवान आगे चले गए| मालिन कंस के दरबार में पहुंची लेकिन उसका मन प्रभु के चरणों में ही लिवलीन था| उसको सीधी सुन्दर खड़ी देखकर हर एक ने इस बारे पूछना चाहा लेकिन उसने कुबड़ेपन को ईश्वर द्वारा दूर करने के बारे में किसी को कुछ न बताया|
जब कंस के अत्याचारों तथा पापों का अंत करके भगवान श्री कृष्ण मथुरा, गोकुल और वृंदावन के राजा बन गए तो उन्होंने कुबिजा को तारा दर्शन देकर कृतार्थ किया| यह है मालिन और भगवान श्री कृष्ण जी की कथा, जो श्रद्धा प्रेम से सुनेगा वह भवसागर से पार हो जाएगा|
ईश्वर कल्याण तथा प्रेम प्रदान करें|
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