श्री गुरु गोबिंद सिंह जी – साखियाँ
गधे को शेर की पौशाक पहना कर सिखों को शिक्षा
एक दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्खों को शिक्षा देने के लिए शेर की खाल रात के समय एक गधे को पहना दी| उस गधे को बाहर खेतों में छोड़ दिया| हरे खेत खाकर गधा बहुत मस्त हो गया|
एक दिन रात के समय वह अपने ही मालिक कुम्हार के घर आकर खड़ा हो गया| कुछ देर बाद कुम्हार के गधे हींगे तो वह भी बाहर से हींगने लगा| कुम्हार ने जब उसकी यह आवाज़ सुनी तो गधे से ऊपर से शेर की खाल उतार दी|उसे दो चार डंडे भी मारे और दूसरे गधों के साथ बांध दिया| यह बात सारे लोगों में फ़ैल गई कि जिसको शेर समझकर उससे डरते थे, वह कुम्हार का गधा था| जिस पर से खाल उतरकर कुम्हार ने उसपर छट लाद दी है|
यह बात सुनकर गुरु जी ने सिक्खों को बताया कि यह तुम्हें बाणा उदहारण के द्वारा समझाया है कि जिस तरह एक गधा शेर का बाणा धारण करके लोगों के खेत खाता रहा और उसे शेर समझकर उसके पास कोई न गया| परन्तु जब वह अपने भाईयों से मिलकर अपनी भाषा बोला तो उसको कुम्हार ने डंडे मारकर आगे लगा लिया और पीठ पर छट लादकर अन्य गधों के साथ बांध दिया| इसी तरह सिक्खी बाणा है, जो इसको धारण करके इसपर कायम रहेगा, उससे सारे लोग भय खायेंगे| परन्तु जो सिक्खी बाणे पर असूलों को त्याग देगा, उसपर सब कोई अपने हुक्म की छट लादेगा और खरी खोटी बोली के डंडे मारेगा|
यह दृष्टांत सुनकर सारे सिक्खों ने प्रण किया कि वह कभी भी सिक्खी बाणे और असूलों का त्याग नहीं करेंगे|
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