श्री गुरु अंगद देव जी जीवन - परिचय
प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): 31 मार्च 1504, हरिके (जिला फिरोजपुर, पंजाब)
Parkash Ustav (Birth date):March 31, 1504; at Harike (Distt. Ferozepur, Punjab)
पिता : भाई फेरू मल जी
Father: Bhai Pheru Mal ji
माता जी : माता दया कौर
Mother: Mata Daya Kaur
महल (पति या पत्नी): माता खिवी जी, (मत्तै दी सराय, जिला फिरोजपुर.)
Mahal (spouse):Mata Khivi ji, (Mattei di Sarai; Distt. ferozepur)
साहिबज़ादे (वंश): बीबी अमरो, बीबी अनोखी, बाबा दासू और बाबा दातु
Sahibzaday (offspring):Bibi Amro, Bibi anokhi, Baba Dasu and Baba Datu
ज्योति ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): गोइंदवाल में 29 मार्च 1552 (पंजाब)
Jyoti Jyot (ascension to heaven):March 29, 1552 at Goindwal (Punjab)
श्री गुरु अंगद देव जी फेरु मल जी तरेहण क्षत्रि के घर माता दया कौर जी की पवित्र कोख से मत्ते की सराए परगना मुक्तसर में वैशाख सुदी इकादशी सोमवार संवत १५६१ को अवतरित हुए| आपके बचपन का नाम लहिणा जी था| गुरु नानक देव जी को अपने सेवा भाव से प्रसन्न करके आप गुरु अंगद देव जी के नाम से पहचाने जाने लगे| आप जी की शादी खडूर निवासी श्री देवी चंद क्षत्रि की सपुत्री खीवी जी के साथ १६ मघर संवत १५७६ में हुई| खीवी जी की कोख से दो साहिबजादे दासू जी व दातू जी और दो सुपुत्रियाँ अमरो जी व अनोखी जी ने जन्म लिया|
भाई जोधा सिंह खडूर निवासी से लहिणा जी को गुरु दर्शन की प्रेरणा मिली| जब आप संगत के साथ करतारपुर के पास से गुजरने लगे तब आप दर्शन करने के लिए गुरु जी के डेरे में आ गए| गुरु जी के पूछने पर आप ने बताया, "मैं खडूर संगत के साथ मिलकर वैष्णोदेवी के दर्शन करने जा रहा हूँ| आपकी महिमा सुनकर दर्शन करने की इच्छा पैदा हुई| किरपा करके आप मुझे उपदेश दो जिससे मेरा जीवन सफल हो जाये|" गुरु जी ने कहा, "भाई लहिणा तुझे प्रभु ने वरदान दिया है, तुमने लेना है और हमने देना है| अकाल पुरख की भक्ति किया करो| यह देवी देवते सब उसके ही बनाये हुए हैं|"
लहिणा जी ने अपने साथियों से कहा आप देवी के दर्शन कर आओ, मुझे मोक्ष देने वाले पूर्ण पुरुष मिल गए हैं| आप कुछ समय गुरु जी की वहीं सेवा करते रहे और नाम दान का उपदेश लेकर वापिस खडूर अपनी दुकान पर आगये परन्तु आपका धयान सदा करतारपुर गुरु जी के चरणों में ही रहता| कुछ दिनों के बाद आप अपनी दुकान से नमक की गठरी हाथ में उठाये करतारपुर आ गए| उस समय गुरु जी धान में से नदीन निकलवा रहे थे| गुरु जी ने नदीन की गठरी को गाये भैंसों के लिए घर ले जाने के लिए कहा| लहिणा जी ने शीघ्रता से भीगी गठड़ी को सिर पर उठा लिया और घर ले आये| गुरु जी के घर आने पर माता सुलखणी जी गुरु जी को कहने लगी जिस सिख को आपने पानी से भीगी गठड़ी के साथ भेजा था उसके सारे कपड़े कीचड़ से भीग गए हैं| आपने उससे यह गठड़ी नहीं उठवानी थी|
गुरु जी ने हँस कर कहा, "यह कीचड़ नहीं जिससे उसके कपड़े भीगे हैं, बल्कि केसर है| यह गठड़ी को और कोई नहीं उठा सकता था| अतः उसने उठा ली है|" श्री लहिणा जी गुरु जी की सेवा में हमेशा हाजिर रहते व अपना धयान गुरु जी के चरणों में ही लगाये रखते|
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