शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Sunday, February 10, 2013

श्री साईं लीलाएं - मिस्टर थॉमस नतमस्तक हुए


ॐ सांई राम









कल हमने पढ़ा था.. ऊदी का एक और चमत्कार










श्री साईं लीलाएं







 








मिस्टर थॉमस नतमस्तक हुए 








उस समय
तक शिरडी गांव की गिनती पिछड़े हुए गांवों में हुआ करती थी
| उस समय
शिरडी और उसके आस-पास के लगभग सभी गांवों में ईसाई मिशनरियों ने अपने पैर मजबूती
से जमा लिये थे
| ईसाइयों के प्रभाव-लोभ में आकर शिरडी के कुछ लोगों ने भी ईसाई धर्म
स्वीकार कर लिया था
| उन्होंने वहां गांव में एक छोटा-सा
गिरजाघर भी बना लिया था
| वहां पर उन्हें यह सिखाया जाता था कि
हिन्दू या मुसलमान जिन बातों को मानें
, चाहे वह उचित ही क्यों न हों, तुम
उनका विरोध करो
| हिन्दू और मुस्लिम जैसा आचरण करें, तुम उसके विपरीत आचरण करो, ताकि तुम
उन सबसे अलग दिखाई पड़ी
|



उनका
एकमात्र उद्देश्य हिन्दू और मुस्लिम सम्प्रदायों के बीच द्वेष उत्पन्न करके
वैमनस्य था
, जिससे वे अपना मकसद सिद्ध कर सकें|



वे कहते
थे कि ईसामसीह में ही विश्वास करो
| केवल वही ईश्वर का सच्चा पुत्र है| उसके
अलावा जितने भी अवतार
, पैगम्बर आदि हैं वे हिन्दुओं और
मुसलमानों की अपनी बनाई हुई मनगढ़ंत कहानियां हैं
| ईसाई संतों का आदर-सम्मान करो, क्योंकि
वही एकमात्र सम्मान योग्य हैं
| हिन्दू साधु-संत या मुस्लिम फकीरों
की बात मत सुनो
| वह सब ढोंगी होते हैं| इस प्रकार की द्वेष भावना वह समाज में
बराबर फैला रहे थे
|



आस-पास
के इलाके में जब हैजे की महामारी फैली तो वह लोग भी इस महामारी से अछूते न रहे
| ईसाई
धर्म का प्रचार-प्रसार करने वाली मिशनरियों ने यह देखकर ब्रिटिश सरकार से सहायता
प्राप्त कर उस इलाके में अस्पताल बनवा दिया
| इस अस्पताल में दवा केवल उन्हीं
लोगों को दी जाती थी
, जो ईसाई
थे
|



जो व्यक्ति
ईसाई बनने के लिए तैयार हो जाते थे
, उनका मुफ्त इलाज करने के साथ-साथ रुपया-पैसा
भी दिया जाता था
|



मिशनरी
अस्पताल के इंजेक्शन और दवा से भी जब कोई भी फायदा होता हुआ दिखाई न पड़ा तो अनेक
ईसाई भी अपने पादरियों की कड़ी चेतावनी को अनसुना कर
, साईं
बाबा की शरण में आने लगे
|



साईं
बाबा के लिए जात-पात का कोई महत्त्व न था
| वह सभी मनुष्यों के प्रति समभाव रखते
थे
, जो कोई भी उनके पास पहुंचता था, वह उसी को अपनी ऊदी दे देते| उस ऊदी
का तुरंत चमत्कारिक असर होता था और
रोगी व्यक्ति मौत के मुंह में जाने से साफ बच निकलता था|



यह सब
देख-सुनकर पादरियों ने पहले तो ईसाइयों को धन का लालच दिया
, फिर
डराया-धमकाया भी
, कि यदि साईं बाबा के पास दवा लेने के
लिए गए तो सारी सुविधाएं छीन ली जाएंगी
| पर लोगों पर इन बातों का जरा-सा भी
असर न हुआ
| वह उनकी धमकियों में नहीं आये, क्योंकि यह उनकी जिंदगी
और मौत का सवाल था
|



साईं
बाबा की दवा तो रामबाण थी
| वह निश्चित रूप से बीमारी का समूल
नाश कर देती थी
| इसका उन सब लोगों को पूरा विश्वास था| वह स्वयं भी इसका प्रत्यक्ष प्रभाव
देख रहे थे
| इस कारण वह सब साईं बाबा के पास आने लगे| उन्होंने
रविवार को गिरजे में जाना भी बंद कर दिया
|



यह सब
देखकर मिस्टर थॅामस के गुस्से का कोई ठिकाना न रहा
| वह शिरडी में अपना पवित्र ईसाई धर्म
फैलाने के लिये आये थे
| वह एक पादरी थे|साईं
बाबा के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए थॉमस ने यह निर्णय किया कि साईं बाबा को
ढोंगी
, झूठा सिद्ध कर दिया जाए| एक बड़े पैमाने
पर उनके विरुद्ध प्रचार-प्रसार आरंभ कर दिया जाए
|



वह सीधे
शिरडी गांव पहुंचे
| साईं बाबा से मिलने के लिए, उनके
दर्शन करने और प्रवचन सुनने के लिए लोग बड़ी-बड़ी दूर-दूर से आते रहते थे
| लेकिन
जब तक साईं बाबा की आज्ञा नहीं मिल जाती थी
, किसी भी व्यक्ति को उनके पास दर्शन, चरणवंदना
करते हेतु नहीं जाने दिया जाता
था|



थॉमस के
साथ भी ऐसा ही हुआ
| वह द्वारिकामाई मस्जिद में पहुंचे तो
साईं बाबा के भक्तों ने उन्हें मस्जिद के बाहर ही रोक दिया
| थॉमस को
मस्जिद के बाहर खड़े-खड़े घंटों हो गए
, लोग आते-जाते रहे| बाबा
उनसे मिलते रहे
, लोकिन थॉमस को उन्होंने नहीं बुलाया|



उस जमाने
में प्रत्येक अंग्रेज अपने आपको बड़ा आदमी समझता था
| थॉमस अंग्रेज थे| साईं
बाबा ने उन्हें मस्जिद के बाहर रोककर उनका अपमान किया था
| वह इस
अपमान को कैसे सहन कर सकते थे ! उन्होंने साईं बाबा के शिष्यों से कहा कि वह बाबा
से पूछ लें कि वह मुझसे मिलेंगे या नहीं
, यदि वह नहीं मिलेंगे, तो मैं अभी
लौट जाऊंगा
|



साईं
बाबा का एक शिष्य थॉमस की खबर लेकर बाबा के पास गया
| बाबा ने थॉमस का संदेश सुना और फिर
मुस्कराकर कहा - "जिन लोगों के मन में शंका
, घृणा, क्रोध, पक्षपात आदि बुराइयां हैं, मैं
उनसे मिलना नहीं चाहता
| मिस्टर थॉमस से कहो, वह चले
जायें
| वैसे मैं उनसे कल मिल सकता हूं, आज की रात वह यहीं ठहरें| यदि वह
अनिष्ट से बचना चाहते हैं तो उन्हें आज रात यहीं पर रुकना चाहिये
| रुकेंगे, तो मैं
उनसे जरूर मिलूंगा
|"



बाबा का
संदेश थॉमस तक पहुंचाने के बाद उनसे आग्रह किया गया कि वह रात को यहीं पर ठहरें
| उनके
रहने और खाने-पीने की व्यवस्था कर दी जाएगी
| किसी भी
तरह की असुविधा नहीं होगी
|



थॉमस ने
उसका आग्रह ठुकरा दिया और वह वापस चल दिए
| वह तांगे में बैठकर शिरडी तक आए थे| उन्हें साईं
बाबा की अनिष्ट की भविष्यवाणी ढोंग का ही एक अंग मालूम पड़ी
|



उनका तांगा
अभी स्टेशन से आधे रास्ते पर ही होगा कि अचानक एक साईकिल सवार तेजी से उनके तांगे
वाले ने घोड़े को रोकने की अपनी ओर से भरपूर उठा
| तेजी से भागा, तांगे
वाले ने घोड़े को रोकने की अपनी ओर से भरपूर कोशिश की
, पर
घोड़ा नहीं रुका
| तांगा उलट गया| मिस्टर
थॉमस तांगे से नीचे गिर पड़े और वह लहुलुहान हो गये
| तब सड़क पर आते-जाते
राहगीरों ने उन्हें उठाया और अस्पताल में जाकर भर्ती कर दिया
|



रात को
अस्पताल में जब थॉमस बेसुध सोए पड़े थे
, अचानक उन्होंने देखा कि साईं बाबा
उनके पलंग के पास खड़े हैं और उनके सर पर बंधी पट्टियों पर हाथ फेरते हुए कर रहे
हैं - " तुमने मेरी बात का विश्वास नहीं किया थक
, फिर भी
मैंने तुम्हारी रक्षा की
| इस दुर्घटना में तुम्हारी मृत्यु
निश्चित थी
| यदि तुम मेरा कहना मानकर वहीं पर रुक गये होते तो मैं तुम्हें बचने
का उपाय बता देता
| तुम्हारे मन में तो मेरे प्रति अविश्वास
भरा हुआ था
, फिर भी तुम्हारी रक्षा करना मेरा धर्म था| मैंने
तुम्हें बचा
लिया|"



बाबा के
अंतर्ध्यान होते थॉमस की आँख खुल गई
, वह चौंककर इधर-उधर देखने लगे, लेकिन
कहीं कोई भी न था
| चारों ओर
गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था
|



कुछ दिनों
के बाद ठीक हो जाने पर डॉक्टरों ने थॉमस को अस्पताल से छुट्टी दे
दी|



अस्पताल
से छुट्टी मिलते ही मिस्टर थॉमस शिरडी की ओर चल पड़े
| साईं
बाबा के प्रति उनके मन में भरा अविश्वास जाता रहा
| धार्मिक कट्टरता भी अब न रही|



थॉमस जब
शिरडी आए तो साईं बाबा ने उनका स्वागत किया
| थॉमस ने आते ही साईं बाबा के चरणों
में अपना सिर रख दिया
| आँखों में आँसू आ गये| वह
बार-बार अपने
अपराधों के लिए क्षमा मांगने लगे|



वहां
उपस्थित सब लोग यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि एक पादरी साईं बाबा के चरणों
में नतमस्तक हो रहा है
| सबने इसे एक
चमत्कार ही माना
|



थॉमस ने
सबके सामने साईं बाबा से क्षमा मांगी
| फिर खुले शब्दों में कहा -
"साईं बाबा ! आप एक महापुरुष हैं
, पहुंचे हुए संत हैं| मैंने इस
बात का प्रमाण स्वयं देख लिया है
| आप मानव जाति का उद्धार करने के लिये
ही इस
धरती पर आये हैं|"



इस घटना
के पश्चात् शिरडी ही नहीं
, आस-पास के तमाम गांवों में भी साईं
बाबा की जय-जयकार होने लगी
| साईं बाबा के नाम का डंका दूर-दूर तक
बजने
लगा था|



सर्वत्र ही उनके नाम की धूम मच गयी थी|



 







कल चर्चा करेंगे.. ब्रह्म ज्ञान पाने का सच्चा अधिकारी











ॐ सांई राम







===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===





बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।


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