Sourced through Shirdi Sai Baba Sansthan
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,
निर्धन के घर भी आ जाना। जो रुखा सूखा दिया हमें,
कभी इसका भोग लगा जाना।। ना छत्र बना सका सोने का,
ना चुनरी तेरी सितारों जड़ी। ना बर्फी न पेड़ा माँ,
श्रद्वा के नयन विछाये खड़ा। इस अर्जी को न ठुकराना।। कभी...................
जिस घर के दीये में तेल नहीं, तेरी ज्योति जगाऊँ माँ कैसे। कभी.......................
निर्धन के घर भी आ जाना। जो रुखा सूखा दिया हमें,
कभी इसका भोग लगा जाना।। ना छत्र बना सका सोने का,
ना चुनरी तेरी सितारों जड़ी। ना बर्फी न पेड़ा माँ,
श्रद्वा के नयन विछाये खड़ा। इस अर्जी को न ठुकराना।। कभी...................
जिस घर के दीये में तेल नहीं, तेरी ज्योति जगाऊँ माँ कैसे। कभी.......................
*माँ दुर्गा जी की जय*
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