शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Friday, August 31, 2012

जैसे ही है अब है साई











ॐ सांई राम












जैसे ही है अब है साई

हम तो तेरे है (२)

तेरे रंग में रंगे हमारे

सांझ सवेरे है....बाबा

तेरे बारे मैं कहेते है शिर्डी वाले लोग

तूने जिसको छुआ न आया उसका कोई रोग

तूने ही हर दिन दुखी के दुर्दिन फेरे है ......बाबा



दूर दूर से लोग हजारों आते तेरे द्वार

जो भी तेरे द्वारे आया पाया उसने प्यार,

तेरे डर वो जहां से कोसो दूर अंधेरे है...बाबा



जहाँ जहाँ पूजा हो तेरी वहाँ न दुःख का काम

कोई करे सलाम तुझे तो कोई करे प्रणाम

उनको हर पल सुख जो तेरी माला फेरे है....बाबा









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Live still snaps of Babaji's shringaar from shirdi today


ॐ सांई राम


 




 


 


Live still snaps of Babaji's shringaar from shirdi today
dated 31/08/2012 between 1135 to 1200 Hrs..
Om Sai ram ji to all..
Baba bless you..
www.shirdikesaibabaji.blogspot.com

Thursday, August 30, 2012

साई बाबा तेरा सहारा है



ॐ सांई राम










साई बाबा तेरा सहारा है
मुझको अपनी शरण ले लो अब
नहीं जग मैं कोई हमारा है
साई बाबा ........






तेरे दर पे जो कोई आता है
मन की मांगी मुराद पाता है
सारे दर से भटक के आया हूँ (२)
सच्चा दरबार ये तुम्हारा है

मेरे चारों तरफ अन्धेरा है (३)
जाने कैसे समय का घेरा है
मैं मधुर गीत तेरे गाता हूँ (२)
सच्चे दिल से तुम्हे पुकारा है

तेरी रहमत ही अपनी किस्मत है
मेरा साई की थोड़ी फुर्सत है
मेरे सर पे भी हाथ अभी रख दो
नहीं आता नज़र किनारा है






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Wednesday, August 29, 2012

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 25






ॐ सांई राम




 


आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है|

 


हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|





श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 25


 


.....................




दामू अण्णा कासार-अहमदनगर के रुई और अनाज के सौदे, आम्र-लीला


------------------------------




 


प्राक्कथन


...........


जो अकारण ही सभी पर दया करते है तथा समस्त प्राणियों के जीवन व आश्रयदाता है, जो परब्रहृ के पूर्ण अवतार है, ऐसे अहेतुक दयासिन्धु और महान् योगिराज के चरणों में साष्टांग प्रणाम कर अब हम यह अध्याय आरम्भ करते है । श्री साई की जय हो । वे सन्त चूड़ामणि, समस्त शुभ कार्यों के उदगम स्थान और हमारे आत्माराम तथा भक्तों के आश्रयदाता है । हम उन साईनाथ की चरण-वन्दना करते है, जिन्होंने अपने जीवन का अन्तिम ध्येय प्राप्त कर लिया है । श्री साईबाबा अनिर्वचनीय प्रेमस्वरुप है । हमें तो केवल उनके चरणकमलों में दृढ़ भक्ति ही रखनी चाहिये । जब भक्त का विश्वास दृढ़ और भक्ति परिपक्क हो जाती है तो उसका मनोरथ भी शीघ्र ही सफल हो जाता है । जब हेमाडपंत को साईचरित्र तथा साई लीलाओं के रचने की तीव्र उत्कंठा हुई तो बाबा ने तुरन्त ही वह पूर्ण कर दी । जब उन्हें स्मृति-पत्र (Notes) इत्यादि रखने की आज्ञा हुई तो हेमाडपंत में स्फूर्ति, बुद्घिमत्ता, शक्ति तथा कार्य करने की क्षमता स्वयं ही आ गई । वे कहते है कि मैं इस कार्य के सर्वदा अयोग्य होते हुए भी श्री साई के शुभार्शीवाद से इस कठिन कार्य को पूर्ण करने में समर्थ हो सका । फलस्वरुप यह ग्रन्थ श्री साई सच्चरित्र आप लोगों को उपलब्ध हो सका, जो एक निर्मल स्त्रोत या चन्द्रकान्तमणि के ही सदृश है, जिसमें से सदैव साई-लीलारुपी अमृत झरा करता है, ताकि पाठकगण जी भर कर उसका पान करें । जब भक्त पूर्ण अन्तःकरण से श्री साईबाबा की भक्ति करने लगता है तो बाबा उसके समस्त कष्टों और दुर्भाग्यों को दूर कर स्वयं उसकी रक्षा करने लगते है । अहमदनगर के श्री दामोदर साँवलाराम रासने कासार की निम्नलिखित कथा उपयुक्त कथन की पुष्टि करती है ।


 


दामू अण्णा


..............


 


पाठकों को स्मरण होगा कि इन महाशय का प्रसंग छठवें अध्याय में शिरडी के रामनवमी उत्सव के प्रसंग में आ चुका है । ये लगभग सन् 1895 में शिरडी पधारे थे, जब कि रामनवमी उत्सव का प्रारम्भ ही हुआ था और उसी समय से वे एक जरीदार बढ़िया ध्वज इस अवसर पर भेंट करते तथा वहाँ एकत्रित गरीब भिक्षुओं को भोजनादि कराया करते थे ।


 


दामू अण्णा के सौदे


.......................


 


1. रुई का सौदा


 


दामू अण्णा को बम्बई से उनके एक मित्र ने लिखा कि वह उनके साथ साझेदारी में रुई का सौदा करना चाहते है, जिसमें लगभग दो लाख रुपयों का लाभ होने की आशा है । सन् 1936 में नरसिंह स्वामी को दिये गये एक वक्तव्य में दामू अण्णा ने बतलाया किरुई के सौदे का यह प्रस्तताव बम्बई के एक दलाल ने उनसे किया था, जो कि साझेदारी से हाथ खींचकर मुझ पर ही सारा भार छोड़ने वाला था । (भक्तों के अनुभव भाग 11, पृष्ठ 75 के अनुसार) । दलाला ने लिखा था कि धंधा अति उत्तम है और हानि की कोई आशंका नहीं । ऐसे स्वर्णम अवसर को हाथ से न खोना चाहिए । दामू अण्णा के मन में नाना प्रकार के संकल्प-विकल्प उठ रहे थे, परन्तु स्वयं कोई निर्णय करने का साहस वे न कर सके । उन्होंने इस विषय में कुछ विचार तो अवश्य कर लिया, परन्तु बाबा के भक्त होने के कारण पूर्ण विवरण सहित एक पत्र शामा को लिख भेजा, जिसमें बाबा से परामर्श प्राप्त करने की प्रार्थना की । यह पत्र शामा को दूसरे ही दिन मिल गया, जिसे दोपहर के समय मसजिद में जाकर उन्होंने बाबा के समक्ष रख दिया । शामा से बाबा ने पत्र के सम्बन्ध में पूछताछ की । उत्तर में शामा ने कहा कि अहमदनगर के दामू अण्णा कासार आप से कुछ आज्ञा प्राप्त करने की प्रार्थना कर रहे है । बाबा ने पूछा कि वह इस पत्र में क्या लिख रहा है और उसने क्या योजना बनाई है । मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह आकाश को छूना चाहता है । उसे जो कुछ भी भगवत्कृपा से प्राप्त है, वह उससे सन्तुष्ट नहीं है । अच्छा, पत्र पढ़कर तो सुनाओ । शामा ने कहा, जो कुछ आपने अभी कहा, वही तो पत्र में भी लिखा हुआ है । हे देवा । आप यहताँ शान्त और स्थिर बैठे रहकर भी भक्तों को उद्घिग्न कर देते है और जब वे अशान्त हो जाते है तो आप उन्हें आकर्षित कर, किसी को प्रत्यक्ष तो किसी को पत्रों द्घारा यहाँ खींच लेते है । जब आपको पत्र का आशय विदित ही है तो फिर मुझे पत्र पढ़ने का क्यों विवश कर रहे है । बाबा कहने लगे कि शामा । तुम तो पत्र पढ़ो । मै तो ऐसे ही अनापशनाप बकता हूँ । मुझ पर कौन विश्वास करता है । तब शामा ने पत्र पढ़ा और बाबा उसे ध्यानपूर्वक सुनकर चिंतित हो कहने लगे कि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि सेठ (दामू अण्णा) पागल हो गया है । उसे लिख दो कि उसके घर किसी वस्तु का अभाव नहीं है । इसलिये उसे आधी रोटी में ही सन्तोष कर लाखों के चक्कर से दूर ही रहना चाहिये । शामा ने उत्तर लिखकर भेज दिया, जिसकी प्रतीक्षा उत्सुकतापूर्वक दामू अण्णा कर रहे थे । पत्र पढ़ते ही लाखों रुपयों के लाभ होने की उनकी आशा पर पानी फिर गया । उन्हें उस समय ऐसा विचार आया कि बाबा से परामर्श कर उन्होंने भूल की है । परन्तु शामा ने पत्र में संकेत कर दिया था कि देखने और सुनने में फर्क होता है । इसलिये श्रेयस्कर तो यही होगा कि स्वयं शिरडी आकर बाबा की आज्ञा प्राप्त करो । बाबा से स्वयं अनुमति लेना उचित समझकर वे शिरडी आये । बाबा के दर्शन कर उन्होंने चरण सेवा की । परन्तु बाबा के सम्मुख सौदे वाली बात करने का साहस वे न कर सके । उन्होंने संकल्प किया कि यदि उन्होंने कृपा कर दी तो इस सौदे में से कुछ लाभाँश उन्हें भी अर्पण कर दूँगा । यघपि यह विचार दामू अण्णा बड़ी गुप्त रीति से अपने मन में कर रहे थे तो भी त्रिकालदर्शी बाबा से क्या छिपा रह सकता था । बालक तो मिष्ठान मांगता है, परन्तु उसकी माँ उसे कड़वी ही औषधि देती है, क्योंकि मिठाई स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है और इस कारण वह बालक के कल्याणार्थ उसे समझा-बुझाकर कड़वी औषधि पिला दिया करती है । बाबा एक दयालु माँ के समान थे । वे अपने भक्तों का वर्तमान और भविष्य जानते थे । इसलिये उन्होंने दामू अण्णा के मन की बात जानकर कहा कि बापू । मैं अपने को इन सांसारिक झंझटों में फँसाना नहीं चाहता । बाबा की अस्वीकृति जानकर दामू अण्णा ने यह विचार त्याग दिया ।


 


2. अनाज का सौदा


 


तब उन्होंने अनाज, गेहूँ, चावल आदि अन्य वस्तुओं का धन्धा आरम्भ करने का विचार किया । बाबा ने इस विचार को भी समझ कर उनसे कहा कि तुम रुपये का 5 सेर खरीदोगे और 7 सेर को बेचोगे । इसलिये उन्हें इस धन्धे का भी विचार त्यागना पड़ा । कुछ समय तक तो अनाजों का भाव चढ़ता ही गया और ऐसा प्रतीत होने लगा कि संभव है, बाबा की भविष्यवाणी असत्य निकले । परन्तु दो-एक मास के पश्चात् ही सब स्थानों में पर्याप्त वृष्टि हुई, जिसके फलस्वरुप भाव अचानक ही गिर गये और जिन लोगों ने अनाज संग्रह कर लिया था, उन्हें यथेष्ठ हानि उठानी पड़ी । पर दामू अण्णाइस विपत्ति से बच गये । यह कहना व्यर्थ न होगा कि रुई का सौदा, जो कि उस दलाल ने अन्य व्यापारी की साझेदारी में किया था, उसमें उसे अधिक हानि हुई । बाबा ने उन्हें बड़ी विपत्तियों से बचा लिया है, यह देखकर दामू अण्णा का साईचरणों में विश्वास दृढ़ हो गया और वे जीवनपर्यन्त बाबा के सच्चे भक्त बने रहे ।


 


आम्रलीला


...........


 


एक बार गोवा के एक मामलतदार ने, जिनका नाम राले था, लगभग 300 आमों का एक पार्सल शामा के नाम शिरडी भेजा । पार्सल खोलने पर प्रायः सभी आम अच्छे निकले । भक्तों में इनके वितरण का कार्य शामा को सौंपा गया । उनमें से बाबा ने चार आम दामू अण्णा के लिये पृथक् निकाल कर रख लिये । दामू अण्णा की तीन स्त्रियाँ थी । परन्तु अपने दिये हुये वक्तव्य में उन्होंने बतलाया था कि उनकी केवल दो ही स्त्रियाँ थी । वे सन्तानहीन थे, इस कारण उन्होंने अनेक ज्योतिषियों से इसका समाधान कराया और स्वयं भी ज्योतिष शास्त्र का थोड़ा सा अध्ययन कर ज्ञात कर लिया कि जन्म कुण्डली में एक पापग्रह के स्थित होने के कारण इस जीवन में उन्हें सन्तान का मुख देखने का कोई योग नहीं है । परन्तु बाबा के प्रति तो उनकी अटल श्रद्घा थी । पार्सल मिलने के दो घण्टे पश्चात् ही वे पूजनार्थ मसजिद में आये । उन्हें देख कर बाबा कहने लगे कि लोग आमों के लिये चक्कर काट रहे है, परन्तु ये तो दामू के है । जिसके है, उन्हीं को खाने और मरने दो । इन शब्दों को सुन दामू अण्णा के हृदय पर वज्राघात सा हुआ, परन्तु म्हालसापति (शिरडी के एक भक्त) ने उन्हें समझाया कि इस मृत्यु श्ब्द का अर्थ अहंकार के विनाश से है और बाबा के चरणों की कृपा से तो वह आशीर्वादस्वरुप है, तब वे आम खाने को तैयार हो गये । इस पर बाबा ने कहा कि वे तुम न खाओ, उन्हें अपनी छोटी स्त्री को खाने दो । इन आमों के प्रभाव से उसे चार पुत्र और चार पुत्रियाँ उत्पन्न होंगी । यह आज्ञा शिरोधार्य कर उन्होंने वे आम ले जाकर अपनी छोटी स्त्री को दिये । धन्य है श्री साईबाबा की लीला, जिन्होने भाग्य-विधान पलट कर उन्हें सन्तान-सुख दिया । बाबा की स्वेच्छा से दिये वचन सत्य हुये, ज्योतिषियों के नहीं । बाबा के जीवन काल में उनके शब्दों ने लोगों में अधिक विश्वास और महिमा स्थापित की, परन्तु महान् आश्चर्य है कि उनके समाधिस्थ होने कि उपरान्त भी उनका प्रभाव पूर्ववत् ही है । बाबा ने कहा कि मुझ पर पूर्ण विश्वास रखो । यधपि मैं देहत्याग भी कर दूँगा, परन्तु फिर भी मेरी अस्थियाँ आशा और विश्वास का संचार करती रहेंगी । केवल मैं ही नही, मेरी समाधि भी वार्तालाप करेगी, चलेगी, फिरेगी और उन्हें आशा का सन्देश पहुँचाती रहेगी, जो अनन्य भाव से मेरे शरणागत होंगे । निराश न होना कि मैं तुमसे विदा हो जाऊँगा । तुम सदैव मेरी अस्थियों को भक्तों के कल्याणार्थ ही चिंतित पाओगे । यदि मेरा निरन्तर स्मरण और मुझ पर दृढ़ विश्वास रखोगे तो तुम्हें अधिक लाभ होगा ।


 


प्रार्थना


...........




 


एक प्रार्थना कर हेमाडपंत यह अध्याय समाप्त करते है ।


हे साई सदगुरु । भक्तों के कल्पतरु । हमारी आपसे प्रार्थना है कि आपके अभय चरणों की हमें कभी विस्मृति न हो । आपके श्री चरण कभी भी हमारी दृष्टि से ओझल न हों । हम इस जन्म-मृत्यु के चक्र से संसार में अधिक दुखी है । अब दयाकर इस चक्र से हमारा शीघ्र उद्घार कर दो । हमारी इन्द्रियाँ, जो विषय-पदार्थों की ओर आकर्षित हो रही है, उनकी बाहृ प्रवृत्ति से रक्षा कर, उन्हें अंतर्मुखी बना कर हमें आत्म-दर्शन के योग्य बना दो । जब तक हमारी इन्द्रयों की बहिमुर्खी प्रवृत्ति और चंचल मन पर अंकुश नहीं है, तब तक आत्मसाक्षात्कार की हमें कोई आशा नहीं है । हमारे पुत्र और मीत्र, कोई भी अन्त में हमारे काम न आयेंगे । हे साई । हमारे तो एकमात्र तुम्हीं हो, जो हमें मोक्ष और आनन्द प्रदान करोगे । हे प्रभु । हमारी तर्कवितर्क तथा अन्य कुप्रवृत्तियों को नष्ट कर दो । हमारी जिहृ सदैव तुम्हारे नामस्मरण का स्वाद लेती रहे । हे साई । हमारे अच्छे बुरे सब प्रकार के विचारों को नष्ट कर दो । प्रभु । कुछ ऐसा कर दो कि जिससे हमें अपने शरीर और गृह में आसक्ति न रहे । हमारा अहंकार सर्वथा निर्मूल हो जाय और हमें एकमात्र तुम्हारे ही नाम की स्मृति बनी रहे तथा शेष सबका विस्मरण हो जाय । हमारे मन की अशान्ति को दूर कर, उसे स्थिर और शान्त करो । हे साई । यदि तुम हमारे हाथ अपने हाथ में ले लोगे तो अज्ञानरुपी रात्रि का आवरण शीघ्र दूर हो जायेगा और हम तुम्हारे ज्ञान-प्रकाश में सुखपूर्वक विचरण करने लगेंगे । यह जो तुम्हारा लीलामृत पान करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ तथा जिसने हमें अखण्ड निद्रा से जागृत कर दिया है, यह तुम्हारी ही कृपा और हमारे गत जन्मों के शुभ कर्मों का ही फल है ।


 


विशेष ः


.........


 


इस सम्बन्ध में श्री. दामू अण्णा के उपरोक्त कथन को उद्घत किया जाता है, जो ध्यान देने योग्य है – एक समय जब मैं अन्य लोगों सहित बाबा के श्रीचरणों के समीप बैठा था तो मेरे मन में दो प्रश्न उठे । उन्होंने उनका उत्तर इस प्रकार दिया ।


 


1. जो जनसमुदाय श्री साई के दर्शनार्थ शिरडी आता है, क्या उन सभी को लाभ पहुँचता है । इसका उन्होंने उत्तर दिया कि बौर लगे आम वृक्ष की ओर देखो । यदि सभी बौर फल बन जायें तो आमों की गणना भी न हो सकेगी । परन्तु क्या ऐसा होता है । बहुत-से बौर झर कर गिर जाते है । कुछ फले और बढ़े भी तो आँधी के झकोरों से गिरकर नष्ट हो जाते है और उनमें से कुछ थोड़े ही शेष रह जाते है ।


 


2. दूसरा प्रश्न मेरे स्वयं के विषय में था । यदि बाबा ने निर्वाण-लाभ कर लिया तो मैं बिलकुल ही निराश्रित हो जाऊँगा, तब मेरा क्या होगा । इसका बाबा ने उत्तर दिया कि जब और जहाँ भी तुम मेरा स्मरण करोगे, मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा । इन वचनों को उन्होंने सन् 1918 के पूर्व भी निभाया है और सन् 1918 के पश्चात आज भी निभा रहे है । वे अभी भी मेरे ही साथ रहकर मेरा पथ-प्रदर्शन कर रहे है । यह घटना लगभग सन् 1910-11 की है । उसी समय मेरा भाई मुझसे पृथक हुआ और मेरी बहन की मृत्यु हो गई । मेरे घर में चोरी हुई और पुलिस जाँच-पड़ताल कर रही थी । इन्हीं सब घटनाओं ने मुझे पागल-सा बना दिया था । मेरी बहन का स्वर्गवास होने के कारम मेरे दुःख का रारावार न रहा और जब मैं बाबा की शरण गया तो उन्होंने अपने मधुर उपदेशों से मुझे सान्तवना देकर अप्पा कुलकर्णी के घर पूरणपोली खलाई तथा मेरे मस्तक पर चन्दन लगाया । जब मेरे घर चोरी हुई और मेरे ही एक तीसवर्षीय मित्र ने मेरी स्त्री के गहनों का सन्दूक, जिसमें मंगलसूत्र और नथ आदि थे, चुरा लिये, तब मैंने बाबा के चित्र के समक्ष रुदन किया और उसके दूसरे ही दिन वह व्यक्ति स्वयं गहनों का सन्दूक मुझे लौटाकर क्षमा-प्रार्थना करने लगा ।





।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।










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साँई-निमत्रण


ॐ सांई राम


 



 


 


श्री साँई राम जी की कृपा से आप सब को 8/09/12 प्रातः 9 बजे श्री रामायण जी का पाठ और 9/09/12 प्रातः 9 बजे श्री रामायण जी के पाठ का भोग और शाम 3 बजे श्री साँई पालकी एंवम रात 7 बजे श्री साँई भजन संध्या एंवम रात 9 बजे भन्डारे का निमन्त्रण दिया जा रहा है ।





आप सभी से निवेदन है कि सहपरिवार उपस्थित हो कर प्रभु का आशिर्वाद प्राप्त करे।
 स्थानः दुर्गा पार्क, एल आई जी फ्लैटस, हस्तसाल, उत्तम नगर, नई दिल्ली, अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करे 9810618245, 9868595826

Tuesday, August 28, 2012

बड़ी दूर से मैं तेरे दर पे आया



ॐ सांई राम






बड़ी दूर से मैं तेरे दर पे आया

फरियाद सुनलो ओ मेरे साई बाबा

शिर्डी के साई बाबा रे..........(२)

बाबा रे.......... आजा रे........ साई रे........ बड़ी दूर से.........



ख्यालों मैं तू है निगाहों मैं तू है

तेरी आरजू हे तेरी जुस्त्ज्हू है

तू हे पत्ता पत्ता तू है डाली डाली

मेरे साईबाबा की महिमा निराली........शिर्डी के..........





तेरे दरपे है दीप पानी से जलते

नहीं देर लगती मुकदर बदलते

लाखों की तुने जो बिगड़ी बनाई

मेरी भी बिगड़ी बना दे oo साई.........शिर्डी........





मुक्कदर के हाथों सताया गया हूँ

सताया गया हूँ रुलाया गया हूँ

मेरे लिए तूने देर क्यूँ लगाई

दीदार करा दो ओ मेरे साई बाबा........शिर्डी..........



ज़माने मैं ना कोई मददगार मेरा

तू ही एक बाबा हे सब कुछ मेरा

दया कर दया कर तू सबका भला कर

मदद कर मदद कर ओ गरीबो के वाली......शिर्डी.......





तेरे दर पे है दीप पानी से जलते

नहीं देर लगती मुकदर बदलते

लाखों की तुने जो बिगड़ी बनाई

मेरी भी बिगड़ी बना दे साई.........शिर्डी........






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Monday, August 27, 2012

न कोई आये न कोई जाये



ॐ सांई राम






न कोई आये न कोई जाये |

वो आये वो जाये

आते जाते, जाते
आते

वो ही राह दिखाए ||




हर हरकत मैं बरकत उसका

प्यार भी उसका नफरत उसकी
|

खंडहर भी वो शहर भी वो है ,

अमृत भी वो ज़हर भी वो है |

वो चाहे तो
प्याला भर दे

वो चाहे तो खाली कर दे .

ताक़त वो कमजोरी भी वो

कठपुतली वो
डोरी भी वो .

नाच उसकी मर्जी की धुन पर

जैसे नाच नचाये ..

न कोई आये न कोई
.....

तेरे सामने गीत है उसका

तेरे पास संगीत है उसका .

तेरे सामने उसकी
माला

तेरे पास तेरा रखवाला .

तेरे सामने सांज है उसके

तेरे सब राज़ है
उसके .

तेरे सामने उसकी ज्योति

तेरे पास पूजा के मोती .

फिर दुनिया के
नाकि धन से

काहे प्यार बढाए ..

न कोई आये न कोई .....

धरती से आकाश का
रिश्ता ,

दूर का रिश्ता, पास का रिश्ता .

साग़र से नदिया का बंधन

बिजली से
बरखा का बंधन .

सड़को से गलियों का नाता .

सावन के झूलों के रिश्ते

माटी
के फूलों के रिश्ते .

साईं के इस जोड़-तोड़ पर

तू क्यों चैन गवाए ..

न कोई
आये न कोई .....












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Sunday, August 26, 2012

प्यारे बाबा आज तुम्हारी मस्जिद इक कोने में, बैठने को जी करता है



ॐ सांई राम








प्यारे बाबा आज तुम्हारी मस्जिद इक कोने में, बैठने को जी करता है

तुम्हारे सामने बैठ के तुम्हारे पावन चरणों में बस रोने को जी करता है



कभी कभी ये सोचता हूँ बहुत दिया है तुमने तो, फिर भी ये जीवन मेरा क्या चाहता है पाने को

प्यारे बाबा बस यह तुमसे जानने को जी करता है, जानने को जी करता है



मैंने अभी तक जीवन में क्या खोया है क्या पाया है, यह दिल कभी क्या आपकी याद में भी रोया है

अपने किये कर्मो को तोलने को जी करता है, तोलने को जी करता है



बरसों से सो रहा था बाबा तुमने जगाया है, तुम्हारे नाम का सिमरन मुझसे दिन रात कराया है

प्यारे बाबा रात दिन दर्शन को जी करता है, दर्शन को जी करता है



अब मुझपर भी तुम अपनी कृपा की बरखा बरसा दो, मुझे भी अपने प्यार में तुम जीना तो सिखला दो

श्रद्धा और सबुरी से आपकी हजूरी में, बस रहने को जी करता है



प्यारे बाबा आज तुम्हारी मस्जिद इक कोने में, बैठने को जी करता है

तुम्हारे सामने बैठ के तुम्हारे पावन चरणों में बस रोने को जी करता है









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Saturday, August 25, 2012

साईं मुझे क़दमों में जगह शामों सहर दे



ॐ सांई राम




साईं मुझे क़दमों में जगह शामों सहर दे

खाली है तेरे सामने दामन इसे भर दे




तेरी याद में रह के मैं हर इक शह को भुला दूँ

खतरों से भी खेलूँ तो हर इक भय को भूला दूँ

हर काम से पहले मेरा यह काम तो कर दे

साईं मुझे क़दमों में जगह शामों सहर दे



हर ओर अँधेरों ने मुझे घेर लिया है

अपनों ने भी ग़ैरों ने भी मुँह फेर लिया है

तू है जो हटा सकता है तक़दीर के परदे

साईं मुझे क़दमों में जगह शामों सहर दे



निर्बल पे तू दुनिया का सितम देख रहा है

इन्सान समझता है के इन्सान ख़ुदा है

इन्सान की शक्ति में तू थोडा सा तो डर दे

साईं मुझे क़दमों में जगह शामों सहर दे



माना मैं तुझे दिल के सिवा दे नहीं सकता

फिर भी मैं अगर माँगूँ तो क्या दे नहीं सकता

जो सिर्फ तुझे देखे मुझे ऐसी नज़र दे

साईं मुझे क़दमों में जगह शामों सहर दे


खाली है तेरे सामने दामन इसे भर दे








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Friday, August 24, 2012

साईं शिर्डीपति अब रहम कीजिये



ॐ सांई राम



आये दर तेरे हम साईं कर दो करम

हो मसीहा बड़े बात में भी है दम

मेरी भी नाथ बिगड़ी बना दीजिये

साईं शिर्डीपति अब रहम कीजिये






दीन दाता हो तुम तुम दयावन्त हो

पीरों के पीर हो सन्तों के सन्त हो

जो भी आये शरण करते दुःख का हरण

करते परेशानी मुश्किल का तुम अन्त हो 

मेरी भी साईंबाबा खबर लीजिये

साईं शिर्डीपति अब रहम कीजिये



गुरुओं के हो गुरु नाथों के नाथ तुम

दुखी लाचारों का देते हो साथ तुम

बन्दगी में असर झुके हर कोई सर

पूरी करते हो भक्तों की हर बात तुम

हम को भी नाथ चरणी लगा लीजिये

साईं शिर्डीपति अब रहम कीजिये



नहीं दिखती है पर कृपा हो जाती है

झोली भी छोटी भक्तों की पड़ जाती है

न कमी कुछ मगर कितने करते गुज़र

कितनी माया यहाँ रोज़ बँट जाती है

मेरी भी और दाता नज़र कीजिये

साईं शिर्डीपति अब रहम कीजिये



आये दर तेरे हम साईं कर दो करम


हो मसीहा बड़े बात में भी है दम


मेरी भी नाथ बिगड़ी बना दीजिये


साईं शिर्डीपति अब रहम कीजिये





यह भजन बहन जास्मिन करण सिंह वालिया (Kuala Lumpur Malaysia) की भजन माला से आप तक लाया गया है | बाबा की कृपा इन पर सदा बनी रहे |

 







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