शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण....

Thursday, May 31, 2012

दर पे जब बुला लिया साईंनाथ ने



ॐ सांई राम






दर पे जब बुला लिया साईंनाथ ने,

सारा गम भुला दिया साईंनाथ ने

साईंनाथ .....  साईंनाथ



आ गया चरण में जो भी मजबूर

उसका दुःख मिटा दिया साईंनाथ ने

साईंनाथ .....  साईंनाथ



हिन्दू और मुसलमाँ थे जो दूर दूर

दोनों को मिला दिया साईंनाथ ने

साईंनाथ .....  साईंनाथ



 थे जो बुरे लोगों ने सच्चाई का

रास्ता दिखा दिया साईंनाथ ने

साईंनाथ .....  साईंनाथ



कितनों को सवारा अपने प्यार से

गिरतों को उठा लिया साईंनाथ ने

साईंनाथ .....  साईंनाथ



दर पे जब बुला लिया साईंनाथ ने,


सारा गम भुला दिया साईंनाथ ने

साईंनाथ .....  साईंनाथ






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Wednesday, May 30, 2012

कितने खुशनसीब थे वो लोग






ॐ सांई राम



कितने  खुशनसीब  थे  वो  लोग

जो  तेरे  साथ  रहे  होंगे  साईं

जिनके  दुःख  दर्द  तूने  खुद  सहे  होंगे  साईं



कितने  खुशनसीब  थे  वो  पल

जिस में  तूने  बातें  की  होंगी  साईं

अपने  चाहने  वालों  से  चंद मुलाकातें  की  होंगी  साईं



कितने  खुशनसीब  थे  वो  दिन

जो  अब  कभी  लौट  कर  नहीं  आयेंगे  साईं

अपनी   यादों  में  ही  हम  जिन्हें  समेट  पाएंगे  साईं



कितनी  खुशनसीब  थी  वो  रातें

जिन में  तू  सोया  होगा  साईं

अपने  भक्तों  के  सुनहरे  भविष्य  का  सपना  संजोया  होगा  साईं



कितनी  खुशनसीब   थी  वह  कफनी

जिसको  तूने  पहना  होगा  साईं

तेरे  तन  से  लिपटा  लगता  कोई  गहना  होगा  साईं



कितनी  खुशनसीब  है  वो  धूनी

जिसे  तूने  खुद  जलाया  होगा  साईं

अपने  हाथों  से  राख  को  जिनके  माथे  पर  लगाया  होगा  साईं



कितनी  खुशनसीब   है  वह  धरती 

जिस पर  तूने  चरण  रखे  होंगे  साईं

तर  गया  होगा  उसका  भी  कण-कण  साईं







विशेष आभार :

मनीषा  अरोड़ा जी

नॉएडा, नई  दिल्ली,  भारत





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श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 10




ॐ सांई राम





आप सभी को शिर्डी के साईं बाबा ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं |


हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है |


हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा| किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|





श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 10



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श्री साईबाबा का रहन सहन, शयन पटिया, शिरडी में
निवास, उनके उपदेश, उनकी विनयशीनता, सुगम पथ ।










प्रारम्भ
---------


श्री साईबाबा का सदा ही
प्रेमपूर्वक स्मरण करो, क्योंकि वे सदैव दूसरों के कल्याणार्थ तत्पर तथा आत्मलीन
रहते थे । उनका स्मरण करना ही जीवन और मृत्यु की पहेली हल करना हैं । साधनाओं में
यह अति श्रेष्ठ तथा सरल साधना है, क्योंकि इसमें कोई द्रव्य व्यय नहीं होता । केवल
मामूली परिश्रम से ही भविष्य नितान्त फलदायक होता है । जब तक इन्द्रयाँ बलिष्ठ है,
क्षण-क्षण इस साधना को आचरण में लाना चाहिये । अन्य सब देवी-देवता तो भ्रमित करने
वाले है, केवल गुरु ही ईश्वर है । हमें उनके ही पवित्र चरणकमलों में श्रदा रखनी
चाहिये । वे तो हर इन्सान के भाग्यविधाता और प्रेममय प्रभु हैं । जो अनन्य भाव से
उनकी सेवा करेंगे, वे भवसागर से निश्चय ही मुक्ति को प्राप्त होंगे । न्याय अथवा
मीमांसा या दर्शनशास्त्र पढ़ने की भी कोई आवश्यकता नहीं है । जिस प्रकार नदी या

समुद्र पार करते समय नाविक पर विश्वास रखते है, उसी प्रकार का विश्वास हमें भवसागर
से पार होने के लिये सदगुरु पर करना चाहिये । सदगुरु तो केवल भक्तों के भक्ति-भाव
की ओर ही देखकर उन्हें ज्ञान और परमानन्द की प्राप्ति करा देते हैं ।



गत
अध्याय में बाबा की भिक्षावृत्ति, भक्तों के अनुभव तथा अन्य विषयों का वर्णन किया
गया हैं । अब पाठकगण सुनें कि श्री साईबाबा किस प्रकार रहते, शयन करते और शिक्षा
प्रदान करते थे ।


 




बाबा का विचित्र बिस्तर

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पहले हम यह देखेंगे कि बबा किस प्रकार शयन
करते थे । श्री नानासाहेब डेंगले एक चार हाथ लम्बा और एक हथेली चौड़ा लकड़ी का
तख्ता श्री साईबाबा के शयन के हेतु लाये । तख्ता कहीं नीचे रक कर उस पर सोते, ऐसा न
कर बाबा ने पुरानी चिन्दियों से मसजिद की बल्ली से उसे झूले के समान बाँधकर उस पर
शयन करना प्रारम्भ कर दिया । चिन्दियों के बिल्कुल पतली और कमजोर होने के कारण
लोगों को उसका झूला बनाना एक पहेली-सा बन गया । चिन्दियाँ तो केवल तख्ते का भी भार
वहन नहीं कर सकतती थी । फिर वे बाबा के शरीर का भार किस प्रकार सहन कर सकेंगी । जिस
प्रकार भी हो, यह तो राम ही जानें, परन्तु यह तो बाबा की एक लीला थी, जो फटी
चिन्दियाँ तख्ते तथा बाबा का भार सँभाल रही थी । तख्ते के चारों कोनों पर दीपक
रात्रि भर जला करते थे । बाबा को तख्ते पर बैठे या शयन करते हुए देखना, देवताओं को
भी दुर्लभ दृश्य था । सब आश्चर्यचकित थे कि बाबा किस प्रकार तख्ते पर चढ़ते होंगे
और किस प्रकार नीचे उतरते होंगे । कौतूहलवश लोग इस रहस्योद्घघाटन के हेतु दृष्टि
लगाये रहते थे, परंतु यह समझने में कोई भी सफल न हो सका और इस रहस्य को जानने के
लिये भीड़ उत्तरोत्तर ही बढ़ने लगी । इस कारण बाबा ने एक दिन तख्ता तोड़कर बाहर
फेंक दिया । यघपि बाबा को अष्ट सिद्घियाँ प्राप्त था, परन्तु उन्होंने कभी भी उनका
प्रयोग नहीं किया और न कभी उनकी ऐसी इच्छा ही हुई । वे तो स्वतः ही स्वाभाविक रुप
से पू्र्णता प्राप्त होने के कारण उनके पास आ गई थी ।





 


ब्रहम का सगुण अवतार

--------------------------


ब्राहृदृष्टि से श्री साईबाबा साढ़े तीन हाथ
लम्बे एक सामान्य पुरुष थे, फर भी प्रत्येक के हृदय में वे विराजमान थे । अंदर से
वे आसक्ति-रहित और स्थिर थे, परन्तु बाहर से जन-कल्याण के लिये सदैव चिन्तित रहते
थे । अंदर से वे संपूर्ण रुप से निःस्वार्थी थे । भक्तों के निमित्त उनके हृदय में
परम शांति विराजमान थी, परंतु बाहर से वे अशान्त प्रतीत होते थे । वे अन्तस से
ब्रहमज्ञानी, परन्तु बाहर से संसार में उलझे हुए दिखलाई पड़ते थे । वे कभी
प्रेमदृष्टि से देखते तो कभी पत्थर मारते, कभी गालियाँ देते और कभी हृदय से लगाते
थे । वे गम्भीर, शान्त और सहनशील थे । वे सदैव दृढ़ और आत्मलीन रहते थे और अपने
भक्तों का सदैव उचित ध्यान रखते थे। वे सदा एक आसन पर ही विराजमान रहते थे । वे कभी
यात्रा को नहीं निकले । उनका दंड एक छोटी सी लकड़ी था, जिसे वे सदैव अपने पास सँभाल
कर रखते थे । विचारशून्य होने के कारण वे शान्त थे । उन्होंने कांचन और कीर्ति की
कभी चिन्ता नहीं की तथा सदा ही भिक्षावृति द्घारा निर्वाह करते रहे । उनका जीवन ही
इस प्रकार का था । अल्लाह मालिक सदैव उनके होठों पर रहता था । उनका भक्तों पर विशेष
और अटूट प्रेम था । वे आत्म-ज्ञान की खान और परम दिव्य स्वरुप थे । श्री साईबाबा का
दिव्य स्वरुप इस तरह का था । एक अपरिमित, अनन्त, सत्य और अपरिवर्तनशील सिद्घान्त,
जिसके अन्त्रगत यह सारा विश्व है, श्री साईबाबा में आविर्भूत हुआ था । यह अमूल्
निधि केवल सत्व गुण-सम्पन्न और भाग्यशाली भक्तों को ही प्राप्त हुई । जिन्होंने
श्री साईबाबा को केवल मनुष्य या सामान्य पुरुष समझा या समझते है, वे यथार्थ में
अभागे थे या हैं ।


श्री साईबाबा के माता-पिता तथा उनकी जन्मतिथि क ठीक-ठीक पता
किसी को भी नहीं है तो भी उनके शिरडी में निवास के द्घारा इसका अनुमान लगाया जा
सकता हैं । जब पहलेपहल बाबा शिरडी में आये थे तो उस समय उनकी आयु केवल 16 वर्ष की
थी । वे शिरडी में 3 वर्ष तक रहने के बाद फिर कुछ समय के लिये अंतद्घान हो गये ।
कुछ काल के उपरान्त वे औरंगबाद के समीर (निजाम स्टेट) में प्रकट हुए और चाँद पाटील
की बारात के साथ पुनः शिरडी पधारे । उस समय उनकी आयु 20 वर्ष की थी । उन्होंने
लगातार 60 वर्षों तक शिरडी में निवास किया और सन् 1918 में महासमाधि ग्रहण की । इन
तथ्यों के आधार पर हम कह सकते है कि उनकी जन्म-तिथि सन् 1838 के लगभग थी ।










बाबा का ध्येय और उपदेश
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सत्रहवी
शताब्दी (1608-1681) में सन्त रामदास प्रकट हुए और उन्होंने यवनों से गायों और
ब्राहमणों की रक्षा करने का कार्य पर्याप्त सीमा तक सफलतापूर्वक किया । परन्तु दो
शताब्दियों के व्यततीत हो जाने के बाद हिन्दू और मुसलमानों में वैमनस्य बढ़ गया और
इसे दूर रने के लिये ही श्री साईबाबा प्रगट हुए । उनका सभी के लिये यही उपदेश था कि
राम (जो हिन्दुओं का भगवान है) और रहीम (जो मुसलमानों का खुदा है) एक ही है और
उनमें किंचित मात्र भी भेद नहीं है । फिर तुम उनके अनुयायी क्यों पृथक-पृथक रहकर
परस्रप झगड़ते हो । अज्ञानी बालको । दोनों जातियाँ एकता साध कर और एक साथ मिलजुलकर
रहो । शांत चित्त से रहो और इस प्रकार राष्ट्रीय एकता का ध्येय प्राप्त करो । कलह
और विवाद व्यर्थ है । इसलिए न झगड़ो और न परस्पर प्राणघातक ही बनो । सदैव अपने हित
तथा कल्याण का विचार करो । श्री हरि तुम्हारी रक्षा अवश्य करेंगे । योग, वैराग्य,
तप, ज्ञान आदि ईश्वर के समीप पहुँचने के मार्ग है । यदि तुम किसी तरह सफल साधक नहीं
बन सकते तो तुम्हारा जन्म व्यर्थ है । तुम्हारी कोई कितनी ही निन्दा क्यों न करे,
तुम उसका प्रतिकार न करो । यदि कोई शुभ कर्म करने की इच्छा है तो सदैव दूसरों की
भलाई करो ।


संक्षेप में यही श्री साईबाबा का उपदेश है कि उपयुक्त कथनानुसार
आचरण करने से भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में तुम्हारी प्रगति होगी


सच्चिदानंद सदगुरु श्री साईनाथ महाराज

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गुरु तो अनेक है कुछ गुरु
ऐसे है, जो द्घार-द्घार हाथ में वीणा और करताल लिये अपनी धार्मिकता का प्रदर्शन
करते फिरते हैं । वे शिष्यों के कानों में मंत्र फूँकते और उनकी सम्पत्ति का शोषण
करते हैं । वे ईश्वर भक्ति तथा धार्मिकता का केवल ढोंग ही रचते हैं । वे वस्तुतः
अपवित्र और अधार्मिक होते है । श्री साईबाबा ने धार्मिक निष्ठा प्रदर्शित करने का
विचार भी कभी मन में नहीं किया । दैहिक बुद्घि उन्हें किंचितमात्र भी छू न गई थी ।
परन्तु उनमें भक्तों के लिए असीम प्रेम था । गुरु दो प्रकार के होते है –


1. नियत और 2. अनियत ।

अनियत गुरु के आदेशों से अपने में उत्तम
गुणों का विकास होता तथा चित्त की शुद्घि होकर विवेक की वृद्घि होती है । वे
भक्ति-पथ पर लगा देते हैं । परन्तु नियत गुरु की संगति मात्र से द्घैत बुद्घि का
हृास शीघ्र हो जाता है । गुरु और भी अनेक प्रकार के होते है, जो भिन्न-भिन्न प्रकार
की सांसारिक शिक्षाये प्रदान करते हैं । यथार्थ में जो हमें आत्मस्थित बनाकर इस
भवसागर से पार उतार दे, वही सदगुरु है । श्री साईबाबा इसी कोटि के सदगुरु थे । उनकी
महानता अवर्णीनीय है । जो भक्त बाबा के दर्शनार्थ आते, उनके प्रश्न करने के पूर्व
ही बाबा उनके समस्त जीवन की त्रिकालिक घटनाओं का पूरा-पूरा विवरण कह देते थे । वे
समस्त भूतों में ईश्वर-दर्शन किया करते थे । मित्र और शत्रु उन्हें दोनों एक समान
थे । वे निःस्वार्थी तथा दृढ़ थे । भाग्य और दुर्भाग्य का उन पर कोई प्रभाव न था ।
वे कभी संशयग्रस्त नहीं हुए । देहधारी होकर भी उनहें देह की किंचितमात्र आसक्ति न
थी । देह तो उनके लिण केवल एक आवरण मात्र था । यथार्थ में तो वे नित्य मुक्त थे ।


वे शिरडीवासी धन्य है, जिन्होंने श्री साईबाबा की ईश्वर-रुप में उपासना की ।
सोते-जागते, खाते-पीते, वाड़े या खेत तथा घर में अन्य कार्य करते हुए भी वे लोग
सदैव उनका स्मरण तथा गुणगान करते थे । साईबाबा के अतिरिक्त दूसरा कोई ईश्वर वे
मानते ही न थे । शिरडी की नारियों के प्रेम की माधुरी का तो कहना ही क्या है । वे
विलकुल भोलीभाली थी । उनका पवित्र प्रेम उन्हें ग्रामीण भाषा में भजन रचने की सदैव
प्रेरणा देता रहता था । यघपि वे शिक्षित न थी तो भी उनके सरल भजनों में वास्तविक
काव्य की झलक थी । यह कोई विदृता न थी, वरना उनका सच्चा प्रेम ही इस प्रकार की
कविता का प्रेरक था । कविता तो सत्ते प्रेम का प्रगट स्वरुप ही है, जिसमें चतुर
श्रोता-गण ही यथार्थ दर्शन या रसिकता का अनुऊव करते है । सर्वसाधारण को इन लौकिक
गीतों की बड़ी आवश्यकता है । शायद भविष्य में बाबा की कृपा से कोई भाग्यशाली भक्त
गीतसंग्रह-कार्य उपने हाथ में लेकर इन गीतों को साईलीला पत्रिका में या पुस्तक रुप
में प्रकाशित करवा दे ।

बाबा की विनयशीलता

-------------------------


ऐसा कहते है कि भगवान् में 6 प्रकार के विशेष गुण
होते है – यथा
1. कीर्ति
2. श्री
3. वैराग्य
4. ज्ञान
5.
ऐश्वर्य और
6. उदारता

श्री साईबाबा में भी ये सव गुण विघमान थे ।
उन्होंने भक्तों की इच्छा-पूर्ति के निमित्त ही सगुण अवतार धारण किया था । उनकी
कृपा (दया) बड़ी ही विचित्र थी। वे भक्तों को स्वयं अपने पास आकर्षित करते थे ।
अन्यथा उन्हें कोई कैसे जान पाता । भक्तों के हेतु वे अपने श्रीमुख से ऐसे वचन
कहते, जिनका वर्णन करने का सरस्वती भी साहस न कर सकती । उनमें से यहाँ पर एक रोचक
नमूना दिया जाता हैं । बाबा अति विनम्रता से इस प्रकार बोलते दासानुदास, मैं
तुम्हारा ऋणी हूँ, तुम्हारे दर्षन मात्र से मुझे सान्त्वना मिली, यह तुम्हारा मेरे
ऊपर बड़ा उपकार है कि जो मुझे तुम्हारे चरणो, का दर्शन प्राप्त हुआ । तुम्हारे
दर्शन कर मैं अपने को धन्य समझता हूँ । कैसी विनम्रता है । यदि कोई यह सोचे कि इन
वाक्यों को प्रकाशित करने से श्री साईबाबा की महानता को आँच पहुँची है तो मैं इसके
लिये क्षमाप्रार्थी हूँ और इसके प्रायश्चित स्वरुप मैं साई नाम का कीर्तन तथा जप
किया करता हूँ ।

यघपु बाहृय दृष्टि से बाबा विषय-पदार्थों का उपभोग करते
हुए प्रतीत होते थे, परन्तु उन्हें किंचितमात्र भी उनकी गन्ध न थी और न ही उनके
उपभोग का ज्ञान था । वे खाते अवश्य थे, परन्तु उनकी जिहृा को कोई स्वाद न था । वे
नेत्रों से देखते थे, परन्तु उस दृश्य में उनकी कोई रुचचि न थी । काम के सम्बन्ध
में वे हनुमान सदृश अखंड ब्रहमचारी थे । उन्हें किसी पदार्थ में आसक्ति न थी । वे
शुद्घ चैतन्य स्वरुप थे, जहाँ समस्त इच्छाएँ, अहंकार और अन्य चेष्टाएँ विश्राम पाती
थी । संक्षेप में वे निःस्वार्थ, मुक्त और पूर्ण ब्रहम थे । इस कथन को समझने के
हेतु एक रोचक कथा का उदाहरण यहाँ दिया जाता है ।

नानावल्ली

------------


शिरडी में नानावल्ली नाम का एक विचित्र और अनोखा व्यक्ति था ।
वह बाबा के सब कार्यों की देखभाल किया करता था । एक समय जब बाबा गादी पर विराजमान
थे, वह उनके पास पहुँचा । वह स्वयं ही गादी पर बैठना चाहता था । इसलिये उसने बाबा
को वहाँ से हटने को कहा । बाबा ने तुरन्त गादी छोड़ दी और तब नानावल्ली वहाँ
विराजमान हो गया । थोड़े ही समय वहाँ बैठकर वह उठा और बाबा को अपना स्थान ग्रहण
करने को कहा । बाबा पुनः आसन पर बैठ गये । यह देखकर नानावल्ली उनके चरणों पर गिर
पड़ा और भाग गया । इस प्रकार अनायास ही आज्ञा दिये जाने और वहाँ से उठाये जाने के
कारण बाबा में किंचितमात्र भी अप्रसन्नता की झलक न थी ।


सुगम पथः सनन्तों की
कथाओं का श्रवण करना और उनका समागम यघपि बाहय दृष्टि से श्री साईबाबा का आचरण
सामान्य पुरुषों के सदृश ही था, परन्तु उनके कार्यों से उनकी असाधारण बुद्घिमत्ता
और चतुराई स्पष्ट ही प्रतीत होती थी । उनके समस्त कर्म भक्तों की भलाई के निमित्त
ही होते थे । उन्होने कभी भी अपने भक्तों को किसी आसन या प्राणायाम के नियमों अथवा
किसी उपासना का आदेश कभी नहीं दिया और न उनके कानों में कोई मन्त्र ही फूँका । उनका
तो सभी के लिये यही कहना था कि चातुर्य त्याग कर सदैव साई साई यही स्मरण करो । इस
प्रकार आचरण करने से समस्त बन्धन छूट जायेंगे और तुम्हें मुक्ति प्राप्त हो जायेगी
। पंचामि, तप, त्याग, स्मरण, अष्टांग योग आदि का साध्य होना केवल ब्राहमणों को ही
सम्भव है, अन्य वर्णों के लिये नहीं ।



मन का कार्य विचार करना है । बिना विचार
किये वह एक क्षण भी नहीं रह सकता । यदि तुम उसे किसी विषय में लगा दोगे तो वह उसी
का चिन्तन करने लगेगा और यदि उसे गुरु को अर्पण कर दोगे तो वह गुरु के सम्बन्ध में
ही चिन्तन करता रहेगा । आप लोग बहुत ध्यानपूर्वक साई की महानता और श्रेष्ठता श्रवण
कर ही तुके है । यह स्वाभाविक स्मरण और पूजन ही साई का कीर्तन है । सन्तों की कथा
का स्मरण उतना कठिन नहीं, जितना कि अन्य साधनाओं का, जिनका वर्णन ऊपर किया जा चुका
है । ये कथाएँ सासारिक भय को निर्मूल कर आध्यात्मिक पथ पर आरुढ़ करती है । इसलिये
इन कथाओं काहमेशा श्रवण और मनन करो तथा आचरण में भी लाओ । यदि इन्हें कार्यान्वित
किया गया तो न केवन ब्राहमण, वरन स्त्रियाँ और अन्य दलित जातियाँ भी शुदृ और पावन
हो जायेंगी । सासारिक कार्यों में लगे रहने पर भी अपना चित्त साई और उनकी कथाओं में
लगाये रहो । तब तो यह निश्चत है कि वे कृपा अवश्य करेंगे । यह मार्ग अति सरल होने
पर भी क्या कारण है कि सब कोई इसका अवलम्बन नहीं करते । कारण केवल यह है कि ईश-कृपा
के अभाववश लोगों मे सन्त कथाएँ श्रवण करने की रुचि उत्पन्न नहीं होती । ईश्वर की
कृपा से ही प्रत्येक कार्य सुचारु एवम सुंदर ढंग से चलता है । सन्तों की कथा का
श्रवणे ही सन्तसमागम सदृश है । सन्त-सानिध्य का महत्व अति महान है । उससे दैहिक
वुद्घि, अहंकार और जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति, हो जाती है । हृदय की समस्त
ग्रंथियाँ खुल जाती है और ईश्वर से मिलन हो जाता है, जोकि चैतन्यघन स्वरुप है ।
विषयों से निश्चय ही विरक्ति बढ़ती है तथा दुःखों और सुखों में स्थिर रहने की शक्ति
प्राप्त हो जाती है और आध्यात्मिक उन्नति सुलभ हो जाती है । यदि तुम कोई साधन जैसे
नामस्मरण, पूजन या भक्ति इत्यादि नहीं करते, परन्तु अनन्य भाव से केवल सन्तों के ही
शरणागत हो जाओ तो वे तुम्हें आसानी से भवसागर के उस पार उतार देंगे । इसी कार्य के
निमित्त ही सन्त विश्व में प्रगट होते है । पवित्र नदियाँ – गंगा, यमुना, गोदावरी,
कृष्णा, कावेरी आदि जो संसार के समस्त पापों को धो देती है, वे भी सदैव इच्छा करती
है कि कोई महात्मा अपने चरण-स्पर्श से हमें पावन करे । ऐसा सन्तों का प्रभाव है ।
गत जन्मों के शुभ कर्मों के फलस्वरुप ही श्री साई चरणों की प्राप्ति संभव है ।


मैं श्रीसाई के मोह-विनाशक चरणों का ध्यान कर यह अध्याय समाप्त करता हूँ ।
उनका स्वरुप कितना सुन्दर और मनोहर है । मसजिद के किनारे पर खड़े हुए वे सब भक्तों
के, उनके कल्याणार्थ उदी वितरण किया करते है । जो इस विश्व को मिथ्या मानकर सदा
आत्मानंद में निमग्न रहते थे, ऐसे सच्चिदानंद श्रीसाईमहाराज के चरणकमलों में मेरा
बार-बार नमस्कार हैं ।




।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Tuesday, May 29, 2012

खबर लो हमारी दया हो तुम्हारी



ॐ सांई राम







खबर लो हमारी दया हो तुम्हारी सुनो साईं बाबा

पिला दो पिला दो प्रेम का प्याला करो पूरी आशा



शिर्डी में साईं नाथ की होती है साईं आरती

कहते हैं सदगुरु सभी भजते हैं सारे भारती

इस्लामी, हिन्दू, पारसी, निस्वार्थ, स्वार्थी

भाविक हैं कितने आदमी सबका है तू महात्मा

खबर लो हमारी दया हो तुम्हारी सुनो साईं बाबा



इक रोगी महारोग का चरणों पे साईं के गिरा

बोला मेरा करो भला बाबा को आ गई दया

थोड़ी सी ख़ाक दे दिया प्रसाद भक्त ने लिया

विश्वास का यह फल मिला रोगी निरोगी हो गया

खबर लो हमारी दया हो तुम्हारी सुनो साईं बाबा



साईं का एक भक्त था इक मित्र उसका था बुरा

बोला जिसे तू मानता क्या उसके पास है धरा

मित्र की यह हुई दशा चोरों के हाथ लुट गया

जब उसने मांग ली क्षमा चोरी का माल मिल गया

खबर लो हमारी दया हो तुम्हारी सुनो साईं बाबा



अस्थर  बड़े बड़े सदन करते है नाथ का भजन

भक्ति में रहते हैं मगन कलयुग के नाथ हैं मोहन

हैं सत्य पूर्ण यह वचन छू ले जो नाथ के चरण

हो जायें सारे दुःख हरण सुख पाए उसकी आत्मा

खबर लो हमारी दया हो तुम्हारी सुनो साईं बाबा







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Monday, May 28, 2012

मन में तू है तन में तू साईं रोम रोम जीवन में तू



ॐ सांई राम



मन में तू है तन में तू साईं रोम रोम जीवन में तू

गीतों में तू है सुरों में तू साईं भक्तों की साँसों में तू

साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु

साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु



साईं सूरज तू चन्दा है तू साईं यमुना तू गंगा है तू

साईं धरती तू अम्बर है तू साईं संत भी तू साधू है तू

साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु


साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु



साईं शिव है तू हरि विष्णु है तू साईं राम है तू श्री कृष्ण है तू

साईं दत्तगुरु सद्गुरु है तू साईं देवा है तू साईं बाबा है तू

साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु


साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु



साईं मन्दिर में मस्जिद में तू साईं मूरत में समाधि में तू

साईं शिर्डी के कण कण में तू साईं धाम में तू आँगन में तू

साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु



साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु



साईं ज्ञान में तू विज्ञान में तू साईं ध्यान में तू आह्वान में तू

साईं श्रद्धा में तू पूजा में है तू साईं भक्ति में तू विनती में तू

साईं चरण मन छू मन छू साईं है मेरा प्रभु



साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु साईं प्रभु








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Sunday, May 27, 2012

मन में उसकी ज्योत जला ले





ॐ सांई राम









मन में उसकी ज्योत जला ले, उसको अपना मीत बना ले



करदे अपना सारा जीवन, रे मन उसके नाम


साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम





घट-घटवासी तू अविनाशी,  कृपा करो प्रभु मैं अभिलाषी


रीत न जानूँ मैं पूजा की, फिर भी रिझाऊँ राम


बोलो राम साईं साईं राम बोलो राम साईं राम




करले उसकी सच्ची पूजा, उस सा साथी और न दूजा


पल पल छिन छिन संग वो तेरे, बिगड़े बनाए काम



साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम










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Saturday, May 26, 2012

A Phone Call to Baba Ji




ॐ सांई राम











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Friday, May 25, 2012

लोग कहते हैं ज़मीं पर किसी को खुदा नहीं मिलता



ॐ सांई राम







लोग कहते हैं ज़मीं पर किसी को खुदा नहीं मिलता

शायद उन लोगों को दोस्त कोई तुम-सा नहीं मिलता




किस्मतवालों को ही मिलती है पनाह किसी के दिल में

यूं हर शख़्स को तो जन्नत का पता नहीं मिलता



अपने साये से भी ज्यादा यकीं है मुझे तुम पर

अंधेरों में तुम तो मिल जाते हो, साया नहीं मिलता


इस बेवफ़ा जिंदगी से शायद मुझे इतनी मोहब्बत न होती

अगर इस ज़िंदगी में दोस्त कोई तुम जैसा नहीं मिलता










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एक छोटी सी गुज़ारिश



ॐ सांई राम






देवो के देव


हर हर महादेव




।। एक छोटी सी गुज़ारिश  ।।




आप
सभी को संकेत दिया जा रहा है कि वर्तमान में  Life OK सैटेलाईट  TV चैनल
पर आजकल जो देवो के देव महादेव, भव्य धारावाहिक प्रदर्शित किया जा रहा है
वे न केवल अति उत्तम भव्यता को संजोये हुए है बल्कि महादेव जी के अद्भुत चरित्र के वर्णन कर्ता का भी चरित्र बखूबी निभा रहा है।












हमारी
संस्कृति, हमारा भूत, वर्तमान और आने वाला भविष्य सभी हमारे आदर्शो का ही
लेखा-झोखा होते है। हमारे देवी-देवताओं ने अपने दैविक काल में हमारे आज को
सवारने हेतू क्या-क्या जप, तप, साधनायें और बलिदान किये है। यह सभी इस
धारावाहिक के माध्यम से बहुत भव्यता के साथ दर्शाया गया है।




।। ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है ।।






देवो
के देव...   महादेव के चरित्र का इस से अधिक उत्तम चित्रण या वर्णन, आज तक
किसी भी धारावाहिक या फिल्म में आज तक के इतिहास में नहीं किया गया और जिस
प्रकार आधुनिक तकनीक का उपयोग उस भव्यता को दर्शाने के लिए किया गया है वह भी काबिले तारीफ़ है।






आप
सभी से अनुरोध है कि आप सभी सहपरिवार इस धारावाहिक को अवश्य देखे और इस
धरावाहिक में भगवान् शिव जी से जुड़ी प्रत्येक ज्ञानवर्धक व पौराणिक शिक्षा

अपने बच्चों को भी अवश्य दे जितना आपको ज्ञात है उतना अपने बच्चों को भी
ज्ञात करवाएं। इस धारावाहिक में सभी अदाकार और अदाकाराओं का मैं तहे दिल से
शुक्रगुज़ार हूँ  कि  वह इतनी लग्न से इसका हिस्सा बने हुए है, और एक बात
यह
भी है लग्न और अदाकारी में गुणवत्ता भी तब तक साथ नहीं देती जब तक इस
प्रकार
के धार्मिक कार्यों में स्वयं भगवान् का आशीर्वाद प्राप्त न हो। जिस
प्रकार सन 1977 में मनोज कुमार जी ने एक फिल्म का निर्माण किया था "शिर्डी
के साईं बाबा" जिसमें भगवान् साईं बाबा की भूमिका सुधीर दलवी जी ने निभायी
थी और वह भूमिका आज भी सभी साईं भक्तों में एक अलग छाप बनाएं हुए है। जिस
प्रकार उस फिल्म में भगवान साईं बाबा ने अपना आशीर्वाद सुधीर दलवी जी को
दिया और उस भूमिका को जीवंत कर दिया था, ठीक उसी तरह इस धारावाहिक में भी
अदाकार, मोहित रैना जी को भी स्वयं भगवान् शिव की अनुमति और आशीर्वाद
प्राप्त हुआ है ऐसा आप अनुभव कर सकते है। मैं अपने सभी साथियों एवं
सहयोगियों की ओर से इस धारावाहिक से जुड़े सभी सदस्यों को हार्दिक बधाई देता
हूँ और उनके इस प्रयास की सराहना भी करता हूँ कि उनके इस प्रयास से हमें
मनोरंजन के साथ अति उत्तम ज्ञान का बोध भी हो रहा है।






धर्म
और अधर्म के ज्ञान का बोध जब हमारी आज की पीढ़ी को भली भाँती ज्ञात हो
जाएगा तो स्वयं ही अधर्म से अलग होना अपना कर्तव्य समझ कर एक नए युग के
निर्माण का अभिन्न अंग बन कर नए राष्ट्र का निर्माण करने में सहायक होंगे।




हमारा
उद्देश्य किसी भी व्यक्ति विशेष को लाभ या हानि पहुचाने का नहीं है और न
ही हम किसी प्रचार द्वारा अपने आप को बेहतर सिद्ध करना चाहते है, हम किसी
कंपनी का हिस्सा भी नहीं है और न ही हम किसी को आहत करना चाहते है।




यह
एक व्यक्ति विशेष के अपने विचार मात्र ही है इसे किसी धर्म प्रचार या किसी
कंपनी के प्रचार का हिस्सा बना कर इसका दुरुपयोग न किया जाए।

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